Surah Kausar In Hindi

Surah Kausar In Hindi

Surah Kausar In Hindi | सूरह कौसर हिंदी में

सूरह कौसर (Surah Kausar) एक ऐसी सूरत है, जिसके नाज़िल होने के बाद, नबी करीम ﷺ के चेहरे मुबारक पर खूबसूरत सी मुस्कुराहट आ गयी थी। इस में सूरह कौसर हिंदी में तर्जुमा के साथ जानेंगे (Surah Kausar In Hindi)। हर मोमिन के लिए सूरह कौसर और हौज़ ए हदीस की हदीस जानना जिंदगी और आखि़रत के लिए ज़रूरी है।

Surah Kausar (Al-Kauthar) In Hindi | सूरह कौसर हिंदी में

सूरह कौसर क़ुरआन पाक की सूरह नंबर 108 है जो क़ुरआन मजीद के पारा 30 में मौजूद है। जब अरब के कुछ लोग नबी करीम ﷺ पर ताने देने शुरू किये। इसके जवाब में अल्लाह अज़्ज़वजल ने सूरह कौसर नाज़िल फरमाई।

लफ्ज़ “कौसर” इस सूरह की पहली आयत से लिया गया है। जिससे मुराद है जन्नत के उस हौज़ का जिसका नाम ही हौज़-ए-कौसर है। लफ्ज़ “कौसर”
और भी कई नेमआते है जिसका वादा अल्लाह पाक ने नबी करीम ﷺ से किया है।

Surah Kausar Kab Aur Kyun Nazil Huyi | सूरह कौसर कब और क्यों नाज़िल हुई

सूरह अल कौसर (Surah Al Kausar) मक्की सूरत है। इसमें सिर्फ एक रुकु और तीन आयात है। इस सूरत का दूसरा नाम सूरह अन-नहर (Surah An-Nahar) भी है।

दलाइल-ए-नबूवा  में एक रिवायत है। अरब में जिस भी शख्स के औलाद यानी बेटा मर जाए। तो अरब के लोग उसे अबतर कह कर पुकारते थे।

अबतक कहते है जड़-कटे को के जैसे उसकी नसल खत्म हो गयी। जिस वक़्त आप ﷺ के बेटे कासिम या इब्राहीम अ.स. का बचपन में ही इंतेकाल होगया।

तो कुफ़्फ़र-ए-मक्का ने यानी मक्का के काफिर ने आप ﷺ को अबतर कह कर पुकारना शुरू कर दिया और तने तंज़ करना उनका काम बन गया था।

ऐसा करने वालों में आस बिन वाइल का नाम खास तौर रिवायत में ज़िक्र हुआ है। जब भी नबी करीम ﷺ की बात आस बिन वाइल के सामने की जाती। तो वो कहने लगता उसकी (ﷺ) की बात मत करो। उसकी तो नस्ल ही खत्म हो गयी है। उसे मरने दो उसका तो कोई नाम लेने वाला बाकी नही रहेगा। इसे मरने दो कोई इसका ज़िक्र करने वाला नही रहेगा।

क्योंकि अरब में बेटों को बड़ी एहमियत दी जाती थी। अरब में बेटे वाले होते थे उन्हे लगता था, बेटे उनके लिए शान इज़्ज़त का बाइस है।

उस वक़्त जब ऐसे ताने आप ﷺ सुनते और गमगीन हो जाया करते थे। जब अल्लाह त’आला ने ये सूरह आप ﷺ पर नाज़िल फरमाई।

Surah Kausar Arabic Mein | सूरह कौसर अरबी में

हदीस का मफहूम

अनस बिन मालिक र.अ. कहते है के:

“एक दिन नबी करीम ﷺ हमारे दरमियाँ तशरीफ फरमाये थे के एकाएक आपको झपकी सी आई, फिर मुस्कुराते हुए आपने अपना सर उठाया।

तो हमने आपसे पूछा: अल्लाह के रसूल ﷺ आपको किस चीज़ ने हसाया?

तो आप ﷺ ने फरमाया, मुझपर अभी अभी एक सूरह उतरी है:

“۱. اِنَّاۤ اَعْطَیْنٰكَ الْكَوْثَرَﭤ

۲. فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَ انْحَرْﭤ

۳. اِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْاَبْتَرُ

In Hindi | सूरह कौसर हिंदी में

1. इन्ना अ’अ तैना कल कौसर

2. फसल्ली लिरब्बिका वनहर

3. इन्ना शानि-अका हुवल अब्तर

Surah Kausar Ka Tarjuma Hindi Mein | सूरह कौसर का तर्जुमा हिंदी में

1. बेशक हमने आपको कौसर अता किया

2. बस आप अपने रब के लिए नमाज़ अदा करो और कुर्बानी करो

3. बेशक आपका दुश्मन ही लावारिस और बे नामो निशान होगा।”

फिर आप ﷺ ने पूछा: क्या तुम जानते हो के कौसर क्या है?

हमने अर्ज़ किया: अल्लाह त’आला और उसके रसूल बहतर जानते,

Hauz E Kausar Kya Hai? | हौज़ ए कौसर क्या है?

फिर आप ﷺ फरमाया वो जन्नत की एक नहर है जिसका मेरे रब ने व’अदा किया है, जिसकी अबखोरी (प्याले) तारों की त’अदद से भी ज़्यादा है,

मेरी उम्मत उस हौज़ पर मेरे पास आयेगी, उसमें से एक शख्स खीच लिया जायेगा,

तो मैं कहूंगा: मेरे रब! ये तो मेरी उम्मत में से है?

तो अल्लाह त’आला मूझसे फरमाऐगा: तुम्हे नही म’अलूम की इसने तुम्हारे ब’आद क्या-क्या बिद’अतें इजाद की है।

सुनन अन-नसाइ, न. 904 | Sunan an-Nasa’i, No. 904

Hindi, Arabic, Translation aur Transliteration | सूरह अरबी में, हिंदी तर्जुमा

(سورة ٱلكَوْثَر) ‎

• عُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّيْطٰانِ الرَّجِيْمِ

بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

• “अ ‘ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम,

बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम”

• “मैं अल्लाह त’आला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से,

अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला है।”

۱. اِنَّاۤ اَعْطَیْنٰكَ الْكَوْثَرَﭤ

1. इन्ना ‘आतैना कल कौसर

1. बेशक हमने आपको कौसर अता किया

۲. فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَ انْحَرْﭤ

2. फसल्ली लिरब्बिका वनहर

2. बस आप अपने रब के लिए नमाज़ अदा करो और कुर्बानी करो

۳. اِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْاَبْتَرُ

3. इन्ना शानियाका हुवल अब्तर

3. बेशक आपका दुश्मन ही बे नामो निशान होगा

Tafseer Hindi Mein | सूरह कौसर की तफ़सीर हिंदी में

(سورة ٱلكَوْثَر کے تفسیر) ‎

• عُوْذُ بِاللّٰهِ مِنَ الشَّيْطٰانِ الرَّجِيْمِ

بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

• “अ ‘ऊजु बिल्लाहि मिनश शैतानिर रजीम,

बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम”

• “मैं अल्लाह त’आला की पनाह में आता हूँ शैतान ने मरदूद से,

अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान व रहम वाला है।”

क़ुरआन पाक की तिलावत से पहले उपर दिया कलामात को पढ़ना ज़रूरी है। शैतान जो हमें क़ुरआन मजीद की तिलावत से दूर करता है।

इसलिए क़ुरआन पाक की तिलावत से पहले पहले अल्लाह पाक का नाम लेना और उसकी की पनाह माँगना बहुत ज़रूरी है।

पहले कलमात की तफसीर: हम खुद के लिए दुआ करते हुए अल्लाह त’आला की पनाह मांगते है शैतान मरदूद से।

दूसरे कलमात की तफसीर: दूसरे कलमात में भी हम दुआ करते। हर अच्छे काम को शुरू करने से पहले हमें अल्लाह पाक नाम लेते है ताकि उस काम बरकत हासिल हो।

۱. اِنَّاۤ اَعْطَیْنٰكَ الْكَوْثَرَﭤ

1. इन्ना ‘आतैना कल कौसर

1. बेशक हमने आपको कौसर अता किया

(Tafseer/तफसीर)

1. सूरह कौसर की पहली आयत की तफसीर अगर की जाए तो मालूम होता है के नबी करीम ﷺ के बेटे कासिम के इंतेकाल के बाद जब अरब के काफिर उस वक़्त आपको अबतर (बेऔलाद, यानी जिसका कोई वारिस नही, जिसकी नस्ल खत्म हो गयी हो) कह कर बोलाने लगे।

तो ज़ाहिर सी बात है, ऐसे ताने सुनकर किसी भी इंसान को तकलीफ होगी। उसी तरह आप ﷺ भी ग़मगीन हो गए थे।

तब इस आयत के ज़रिये अल्लाह त’आला नबी ﷺ को कौसर आता फरमाते है। कौसर से मुराद जन्नत के उस नहर से है। जो आप ﷺ को आखि़रत में आता की जायेगी। जिससे आप ﷺ अपने उम्मतियों को पानी पिलायेंगे।

ये पानी ऐसा होगा के एक बार जो हौज़ ए कौसर का पानी पीले फिर उसी कभी प्यास नही लगेगी। चाहे वो कुछ भी खाये या पिये।

कौसर से मुराद नेमतों से भी है जो आप ﷺ को सहाबा की शकल में आता हुई। सहाबा नबी ﷺ के ऐसे साथी थे जो उनकी हर एक बात पर यकीं रखते और उनकी एक आवाज़ पर मर मिटने को तईयार रहते।

कौसर से और भी मुराद है, जो आप ﷺ को नबोवत का दावेदारी हासिल हुई। यहाँ तक के क़यामत आने वाली तमाम लोगों के लिए आखरी नबी का खिताब मिला।

दीन एइसलाम मिला, रहमतुल्लिल ‘आलमीन का खिताब मिला। अच्छी और नेक बीवीयाँ मिली।

फरमा-बरदार नवासे मिले, जो दिन की राह में डटे रहे, वगैरह वगैरह। और भी वो चीज़े जो सिर्फ अल्लाह त’आला और उसके रसूल ﷺ के इल्म में है। सभी नेमतों को कौसर कहा जा सकता है।

۲. فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَ انْحَرْﭤ

2. फसल्ली लिरब्बिका वनहर

2. बस आप अपने रब के लिए नमाज़ अदा करो और कुर्बानी करो

(Tafseer/तफसीर)

2. दूसरी आयत में अल्लाह त’आला नबी करीम ﷺ को हिदायत देते हुए अपने तमाम बंदों को भी नसीहत फरमा रहे है।

दूसरी आयत में नमाज़ और कुर्बानी की हिदायत दी गयी है। नमाज़ से मुराद सिर्फ फ़र्ज़ नमाज़ नही है। बल्कि इसमें निफ्लि इबादत भी आ गयी। तहज्जुद की नमाज़ भी इसमें शुमार है।

साथ ही कुर्बानी करने की नसीहत भी है। कुर्बानी से मुराद बस साल में एक दफा ईद-उल-अधा में जानवर कुर्बान करना नही है। बल्कि जानवर के कुर्बानी के साथ-साथ अपने जान और माल की भी कुर्बानी करने की बात कही गयी है।

जिस तरह इंसान थकावट कमज़ोरी के बा-वजूद नमाज़ के लिए खडा होता है। अल्लाह त’आला के लिए अपने वक़्त को अल्लाह पाक की राह में कुर्बान करता है। इसमें निफ्लि इबादत भी शुमार है। बेशक़ इसमें रोज़ा भी आ गया।

अब रह गयी माली तौर पर अल्लाह त’आला के लिए कुर्बानी देना। जानवर खरीदने में माल यानी पैसे लगते है। तो इंसान अपने माल को अल्लाह त’आला के लिए गरीबों में तकसीम करता है।

लेकिन गौर करने की बात ये है के क्या सिर्फ साल में एक दफा ही कुर्बानी करने की बात कही गयी है।

जी नही, हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा जितनी अपनी औकाद हो। हमेशा अपने माल से सदक़ा खैरात करते रहना चाहिए। इसमें गरीबों को खाना खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना, गरीबों को सस्ते दामों में चीज़े बेचना, ज़रूरत-मंद को कर्ज़ा देना, वगैरह वगैरह भी शुमार है।

۳. اِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْاَبْتَرُ

3. इन्ना शानि-अका हुवल अब्तर

3. बेशक आपका दुश्मन ही बे नामो निशान होगा

(Tafseer/तफसीर)

3. तीसरी और आखरी आयत में अल्लाह त’आला उन सभी तंज़ और ताने देने वालों का अंज़ाम अल्लाह त’आला फरमाते है।

जिस तरह वो लोग नबी करीम ﷺ को अबतर (ला-वारिस, बे-औलाद) होने का ताने देते थे। अल्लाह त’आला उन दुश्मनों का अंजाम वही कर देंगे।

आज आप देख लीजिये कौन जनता है। उनको जो नबी ﷺ को ताने दिया करते थे। उनका नाम लेने वाला कोई नही, ना ही उनकी मगफिरत की दुआ करने वाला कोई बचा।

और हमारे नबी ﷺ को सारा ज़माना जनता और पेहचानता है। उनपर दुरूद-ओ-सलाम के नज़राने पेश करता रहता है। हर उम्मती अपनी जान से ज़्यादा आप ﷺ को मुहब्बत करता है।

इस आयत से इस बात का भी पता चलता है के नबी करीम ﷺ के उम्मतियों को याद करने वाला और साथ ही उनके लिए अल्लाह त’आला से मग़फिरत की दुआ करने वाला कोई ना कोई ज़िंदा होता है।

नेक लोगों के नेक औलाद हर मौकों पर अपने फौत शुदा माँ-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी वगैरह के लिए हमेशा फातेहा पढ़ा करते है।

यहाँ तक के माँ-बाप की हयात में ही नेक औलादें हर रोज़ नमाज़ में जन्नत की और जहन्नम से निजात वगैरह, की दुआ मांगते है।

और ये ऐसे नही रुकता ये सिलसिला चलता ही जाता है। उनके बाद उनके बच्चे दुआ करते है। फिर उनके बाद उनके बच्चे। येही नही अपनी दुआओं में वो खानदान सभी को शामिल कर लेते है।

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