Surah Kahf Ki Fazilat Aur Fayde | सूरह कहफ़ की फ़ज़ीलत और फ़ायदे

Surah Kahf Ki Fazilat Hindi Mein

सूरह अल- कहफ़ पढ़ने वाला दज्जाल की फ़ितनों से बचा रहेगा और ये और इसकी बाक़ी फ़ज़ीलत (Surah Kahf Ki Fazilat) क्या हदीस से साबित है? सूरह अल कहफ़ कुरआन पाक की सूरतों में से एक अहम सूरह है। जिस में अल्लाह त’आला के तरफ से हिदायत का पैग़ाम हमें मिलता है।

Surah Kahf Ki Fazilat | सूरह कहफ़ की फ़ज़ीलत

Surah Al Kahf Quran Ki Kaunsi Surah Hai? | सूरह अल कहफ़ क़ुरआन की कौनसी सूरह है?

सूरह अल कहफ़ क़ुरआन पाक की 18 वीं सूरह है।

Surah Al Kahf Makki Hai Ya Madani? | सूरह कहफ़ मक्की है या मदनी?

सूरह अल कहफ़ मक्की सूरह है।

Surah Kahf Mein Ketni Ayatein Hai? | सूरह कहफ़ में कितनी आयातें है?

सूरह काहफ में 110 आयातें हैं।

Surah Kahf Quran Shareef Ke Kaunse Pare Mein Hai? | सूरह कहफ़ क़ुरआन शरीफ के कौन से पारे में है?

सूरह कहफ़ क़ुरआन शरीफ के 15 वे पारे के आधे से 16 वे पारे के आधे तक है।

सूरह कहफ़ कहानी या वाक़िया?

इस सूरह में अल्लाह त’आला ने चार वाक़ियात बयान किये हैं। जो बेशक हम सभी मुस्लीमीन के लिए अल्लाह पाक के तरफ से हिदायत है।

इस सूरह के ज़रिये अल्लाह सुभान व त’आला हमारे ईमान को मज़बूत बनाना चाहते हैं।

क़ुरआन मजीद की ये जो चार कहानियाँ है, असल में ये सच्चे वाक़ियात है। जिसे सूरह कहफ़ की कहानी कहना बिल्कुल गलत होगा।

कहानी तो वो होती है जो मन-घडंत होती। जिसका हक़ीकत से कोई वास्ता नही। जब की सच्ची बातों को वाक़िया कहा जाता है।

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• सूरह कहफ़ का पहला वाक़िया:

अस हाबुल कहफ़ 7 मुस्लीमीन का वाक़िया है। जब सारा शहर ग़ैरउल्ला यानी झूठे खुदा को मानने वाला था। उस वक़्त उनके पास अल्लाह त’आला के तरफ से पैग़ाम ए हक़ पहुँचा। तो उन्होंने हक़ को क़ुबूल कर लिया और ईमान वाले हो गए।

जिसके नतीजे में तमाम शहर वाले उन के दुश्मन बन गए। जैसे हर दौर में ईमान वालों के रास्ते में ग़ैर मुसलमान मुश्किलें पैदा करते है।

उस दौर में भी उन अस हबे कहफ़ का जीना दुशवार बन चुका था। लाख जददो-जहद के बाद उनके पास उस शहर को छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नही बचा था।

शहर से निकलने के बाद उन्होंने एक ग़ार यानी गुफ़ा में क़ायम किया। फिर अल्लाह त’आला की रहमत से 309 साल तक नींद उनपर इस क़दर तारी हुई के ना उन्हे भूक लगी, ना वो बूढ़े हुए और ना ही वो ज़रा भी थके।

तब तक तमाम शहर वाले अल्लाह त’आला पर ईमान ला चुके था। अरबी ज़बान में कहफ़ का माने गुफ़ा होता है। इसलिए इस वाक़िया की वजह से उन 7 लोगों को अस हाबे कहफ़ कहते हैं।

इसी वाक़िया पर इस सूरह का नाम सूरह अल कहफ़ रखा गया।

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• सूरह अल कहफ़ का दूसरा वाक़िया

दूसरा वाक़िया ईमान और दौलत की है। इस में दोनो लोगो के पास एक-एक बग़ान होते है। एक बहुत दौलत-मंद होता है और साथ ही उसके बग़ान में फसल बहुत अच्छी होती है। लेकिन वो ईमान वाला नही होता है। ना ही अपने दौलत में से अल्लाह त’आला के राह पर ख़र्च करता था।

जबकि दूसरे बग़ान के मालिक के पास न तो खूब दौलत होती है और न ही उसके बग़ान में अच्छी फसल उगती है।

फिर भी उसका ईमान अल्लाह अज़्ज़वाजल पर इतना पक्का होता है के अपने कम आमदनी से अल्लाह त’आला की राह में दिल से ख़र्च करता था।

ये वाक़िया दज्जाल के फितने मिलता है। जिस तरह सच्चे ईमान वाला का रोज़ी में अल्लाह पाक पर यक़ीन रखता और उसी कम रोज़ी से अल्लाह त’आला की राह में सदक़ा करता है।

जब कि बे-ईमान का दिल ना ही अल्लाह सुभान व त’आला से डरता है और ना उसे अपने आखि़रत की फ़िक्र है। वो तो अपनी ही दुनियाँ में गुम है। अपनी खत्म हो जाने वाली दौलत का लुत्फ़ उठा रहा है।

इसलिए सूरह अल कहफ़ की तिलावत हर जुमाह को करनी चाहिए। साथ ही हर रोज़ इस सूरत की पहली और आखरी 10 आयत की भी तिलावत करनी चाहिए।

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• सूरह अल कहफ़ का तीसरा वाक़िया

तीसरा वाक़िये में अल्लाह पाक ने हज़रत मुसा अ.स. को हज़रत ख़िज्र अ.स. से मुलाकात कर के उनसे हिदायत की बातें सीखने का हुक्म दिया था।

अल्लाह पाक ने हज़रत मुसा अ.स. को मुज्ज़ेह से भरी इल्म से और हज़रत ख़िज़र अ.स. को इल्म से नवाज़ा था।

इस वाक़िये में अल्लाह पाक ने हज़रत मुसा अ.स. को हज़रत ख़िज़र अ.स. से मुलाकात कर के उनसे हिदायत की बातें सीखने का हुक्म दिया था।

इस वाक़िये के ज़रिये अल्लाह त’आला हमे बद इख़्लाकी और इल्म के तकब्बुर से बच कर नर्मी और मुहब्बत से काम लेना सिखाना चाहते है।

• सूरह अल कहफ़ का चौथा वाक़िया

चौथा वाक़िया सिकंदरे आज़म यानी ज़ुलकरनेन की है। जो एक इंसाफ का रहनुमा था। जिसे अलेक्ज़ेन्डर दी ग्रेट (Alexander the great) भी कहते है।

इस वाक़िये के ज़रिये अल्लाह पाक नाइंसाफ़ी के रेहनुमाओं को इंसाफ का रास्ते पे चलने की हिदायत देते है।

अल्लाह पाक ने इन चारों क़िस्सो के ज़रिये हमे सभी मुसलमानों को बहुत अहम हिदायत दी है। सुभान अल्लाह

एक हिदायत जो अल्लाह त’आला पर यकीन की है। दूसरी हिदायत जो दौलत और ग़रीबी को आज़मा कर दी है। तीसरी हिदायत जो इल्म को आज़मा कर और ख़ुद को हमेशा हकीर समझने की दी है। और चौथी हिदायत जो सच्चा रहनुमा बन कर हुकूमत करने की आज़माईश की दी है।

Surah Kahf Ki Fazilat | सुरह कहफ़ की फ़ज़ीलत

हदीस का मफहूम

“जो कोई जुमह के दिन सूरह कहफ़ की तिलावत करे तो अल्लाह त’आला इस के लिए दो जुमह के दरमियाँ नूर रौशन कर देगा।”

अल मुसतदरक अलस सलिहीन लिल हाकिम, हदीस न. 3392

इस हदीस ए मुबारिका से ये पता चलता है के सूरह कहफ़ जुमाह के दिन पढ़ने से अल्लाह पाक के तरफ से नूर यानी रौशनी मिलती है। जो आपको इस जुमाह से ले कर आने वाले जुमाह तक अल्लाह पाक के हिदायत के साये में रखता है।

और अगर आपकी जिंदगी में अल्लाह पाक की तरफ से हिदायत की रौशनी मिले तो किसी गुमराही में नही पड़ेंगे। इंशा अल्लाह

क्योंकि रौशनी में आगे दिखता है के आगे बढ़े या ना बढ़े। और अंधेरा ग़ुमराह करता है। तो हर जुमाह सूरह कहफ़ की तिलावत ज़रूर करें|

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Surah Kahf Ki Pehli 10 Ayat | सूरह की पहली 10 आयत

हदीस का मफहूम

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:

“जो शख्स सूरह काहफ की पहली दस आयतों को याद कर लेगा और इसकी तिलावत करेगा तो वो दज्जाल के फिटने से महफूज़ रहेगा।

दज्जाल का फितना ऐसा फितना है जिस के लिए हर नबी ने अपनी कौम से डराया है। और इससे बचने की नसीहत की है।

सहीह मुस्लिम न. 1883

हदीस का मफहूम

आप ﷺ ने फरमाया:

हज़रत नूह स.स. से ले कर तमाम अंबियाँ स.स. मुझसे पहले तक अपने क़ौम को दज्जाल के फितने से अपने क़ौम को दराया है।

सहीह बुखारी 7127

Surah Kahf Ki Akhri 10 Ayat | सूरह कहफ़ की आखरी 10 आयात

कुछ रिवायत में पहली 10 आयतों का ज़िक्र है वो दज्जाल के फितने से मेहफ़ूज़ रखेंगी।

सहीह मुस्लिम न. 1883

लेकिन कुछ रिवायत में आखरी 10 आयतों का ज़िक्र है वो दज्जाल के फितनों से बचाहये गी।

सिलसिला अहदीस सहीहा हदीस न. 2651

बहरहाल पहली और आखरी दस आयतों की तिलावत रोज़ाना किसी भी वक़्त कर सकते है।

सरकार ए दो आलम ﷺ ने फ़रमाया:

“जिस ने सूरतुल कहफ़ को इस तरह पढ़ा जिस तरह नाजिल हुई तो वो इस के लिए क़यामत के रोज़ नूर होगी, मक्का से लेकर जहाँ तक वो रहता है वहां तक के लिए नूर होगी।

एक सहाबी जो घोड़ा बन्ध कर अपने घर के सहन में क़ुरआन की तिलावत कर रहे थे, और उनका बेटा चारपाई पर सो रहा था।

उनका दिल चाहने लगा था कि वो ऊंची आवाज़ में क़ुरआन तिलावत करें, लेकिन उन्हे डर था जब वो ऊंची आवाज़ में तिलावत करते तो कही घोड़ा बिदकने न लगे और उनके बेटे को लात न मार दे इसलिए वो अपनी आवाज़ धीमी कर के तिलावत करते और घोड़ा भी ख़ामोश रहता।

लेकिन फिर ऊंची आवाज़ में क़ुरआन पाक की तिलावत करने को मन करता तो वो आवाज़ ऊँची कर के तिलावत करने लगते।

लेकिन फिर ऊँची आवाज़ से घोड़ा बिदकने लगता। यही चलता रहा जब तक सुबह का वक़्त हुआ और उन्होंने अपना हाथ दुआ के लिया। तो आसमान की तरफ देखा कि कुछ बादल हैं जिससे रोशनियाँ निकल रही है और ये रोशनियाँ उनके सर से दूर आसमान तक जा रही हैं।

फिर आप ﷺ की पास गए और पर वाक़िया सुनाया तो आप ﷺ ने फ़रमाया:

“ये अल्लाह त’आला के फ़रिश्ते थे जो तुम्हारे क़ुरआन की तिलावत सुनने के वसते तुम्हारे पास आ रहे थे। और अगर तुम यूँही तिलावत करते रहते तो आज मदीने के लोग अपनी आँखों से अल्लाह त’आला के फ़रिश्तों को देख लेते।”

इस प्यारे वाक़िये से सूरह काहफ की फज़ीलत का पता चलता है कि इस सूरत सुनने के लिए फ़रिश्ते खुद ज़मीन पर आ गए।

तो हमें भी इसको अपनी ज़िन्दगी का मामूल बना लेना चाहिए और हर जुमाह के दिन चाहे जिस भी वक़्त इसकी तिलावत करनी चाहिए।

और अपने दोस्तो रिश्तेरों को भी इसे पढ़ने का मशवराह देना चाहिए। ताके इसका अजर ओ सवाब बढ़ता जाए।

खुद भी दज्जाल के फितने से महफूज़ रहेंगे और अपने प्यारों को भी मेहफ़ूज़ रखेंगे।

और साथ ही एक जुमे से ले कर दुसरा जुमह आने तक अल्लाह पाक के नूर यानी हिदायत के साये में रहेंगे।

अल्लाह पाक के हिदायत पाए, सूरह की तिलावत करे और अपने दोस्तो इसकी फ़ज़ीलत बताएं!

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