Surah Kahf in Hindi

Surah Kahf in Hindi Translation Urdu

जुमाह के दिन सूरह कहफ़ की तिलावत करना बहुत ही अफ़ज़ल माना गया है। अगर अपनी जिंदगी के मुआमलात में अल्लाह पाक तरफ से हिदायत चाहते है तो इस सूरह की जुमाह के दिन ज़रूर करें। इस पोस्ट में सूरह कहफ़ हिंदी (Surah Kahf In Hindi) में दी हुई है।

Surah Kahf in Hindi | सूरह कहफ़ हिंदी में तर्जुमा के साथ

सूरह कहफ़ की फ़ज़ीलत  हदीस में

जुमाह के दिन सूरह कहफ़ की तिलावत करना बहुत हि अफ़ज़ल माना गया है। अगर अपनी जिंदगी के मुआमलात में अल्लाह पाक के तरफ से हिदायत चाहते है तो सूरह कहफ़ की तिलावत जुमाह के दिन ज़रूर करें। इस पोस्ट में सूरह कहफ़ हिंदी (Surah Kahf In Hindi) में दी हुई है।

हदीस का मफहूम

जो कोई जुमह के दिन सूरह कहफ़ की तिलावत करे तो अल्लाह त’आला इस के लिए दो जुमह के दरमियाँ नूर रौशन कर देगा।

अल मुसतदरक अलस सलिहीन लिल हाकिम, हदीस न. 3392

इस हदीस ए मुबारिका से ये पता चलता है के सूरह कहफ़ जुमाह के दिन पढ़ने से अल्लाह पाक के तरफ से नूर यानी रौशनी मिलती है। जो आपको इस जुमाह से ले कर आने वाले जुमाह तक अल्लाह पाक के हिदायत के साये में रखता है।

और अगर आपकी जिंदगी में अल्लाह पाक की तरफ से हिदायत की रौशनी मिले तो किसी गुमराही में नही पड़ेगे। इंशा अल्लाह

क्योंकि रौशनी में आगे दिखता है के आगे बढ़े या ना बढ़े। और अंधेरा ग़ुमराह करता है। तो हर जुमाह सूरह कहफ़ की तिलावत ज़रूर करें।

इस पोस्ट में सूरह कहफ़ का तर्जुमा हिंदी में दिया गया है।

Surah Kahf Kaun se Pare Mein Hai? | सूरह कहफ़ कौन से पारे में है?

सूरह कहफ़ क़ुरआन पाक के 15 पारे के बीच से 16 पारे के आधे तक है।

Surah Kahf Ki Tilawat Kaun se Din Karna Afzal Hai? | सूरह कहफ़ की तिलावत कौन से दिन करना अफ़ज़ल है?

सूरह की तिलावत जूमाह के दिन करना बहुत अफ़ज़ल है।

सुरह कहफ़ के बारे में हदीस

सुरह कहफ़ के बारे में एक हदीस का मफहूम है

जो कोई जुमह के दिन सूरतुल कहफ़ की तिलावत करे तो अल्लाह त’आला इसे लिए दो जुमह के दरमियाँ नूर रौशन कर देगा।

अल मुसतदरक अलस सलिहीन लिल हाकिम, हदीस न. 3392

इस हदीस ए मुबारिका से ये पता चलता है के सूरह कहफ़ जुमाह के दिन पढ़ने से अल्लाह पाक के तरफ से नूर यानी रौशनी मिलती है।

और अगर आपकी जिंदगी में अल्लाह पाक की तरफ से हिदायत की रौशनी मिले तो किसी गुमराही में नही पड़ेंगे। इंशा अल्लाह

क्योंकि रौशनी में आगे दिखता है के आगे बढ़े या ना बढ़े। और अंधेरा ग़ुमराह करता है। तो हर जुमाह सूरह कहफ़ की तिलावत ज़रूर करें। सूरह कहफ़ का तर्जुमा हिंदी में यहाँ से आप पढ़ सकते है|

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Surah Kahf In Hindi | सूरह कहफ़ का तजुर्मा हिंदी में

अ’ऊज़ु बिल्लाहि मिनश शैतानिररजीम बिस्मिल्ला हिररहमानिररहीम

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान नुहायत रहम वाला है

1. अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अन्ज़ ल ‘अला ‘अब्दिहिल किता-ब व लम यज’अल लहू ‘इ वजा

• हर तरह की तारीफ ख़ुदा ही को (सज़ावार) है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर किताब (क़ुरान) नाज़िल की और उसमें किसी तरह की कज़ी (ख़राबी) न रखी

2. क़य्यिमल लियुन्ज़ि र बअसन् शदीदम मिल्लदुन्हु व युबश्शिरल मुअमिनी-नल्लज़ी न यअमलू नस्सालिहाति अन न लहुम अजरन ह सना

• बल्कि हर तरह से सधा ताकि जो सख्त अज़ाब ख़ुदा की बारगाह से काफिरों पर नाज़िल होने वाला है उससे लोगों को डराए और जिन मोमिनीन ने अच्छे अच्छे काम किए हैं उनको इस बात की खुशख़बरी दे की उनके लिए बहुत अच्छा अज्र (व सवाब) मौजूद है

3. माकिसी न फीहि अ बदा

• जिसमें वह हमेशा (बाइत्मेनान) तमाम रहेगें

4. व युन्ज़िरल्लज़ी न कालुत तख़ज़ल्लाहु व लदा

• और जो लोग इसके क़ाएल हैं कि ख़ुदा औलाद रखता है उनको (अज़ाब से) डराओ

5. मा लहुम् बिही मिन अिल्मिंव व ला लि आ-बाइहिम , कबुरत कलि मतन तख़-रुजु मिन अफ-वाहिहिम, इंय्यक़ूलू न इल्ला कज़िबा

• न तो उन्हीं को उसकी कुछ खबर है और न उनके बाप दादाओं ही को थी (ये) बड़ी सख्त बात है जो उनके मुँह से निकलती है ये लोग झूठ मूठ के सिवा (कुछ और) बोलते ही नहीं

6. फ़ ल’अ़ल्ल क बाख़ि’अुन नफ़्स क ‘अ़ला आसारिहिम इल्लम युअमिनू बिहाज़ल हदीसि अ सफ़ा

• तो (ऐ रसूल) अगर ये लोग इस बात को न माने तो यायद तुम मारे अफसोस के उनके पीछे अपनी जान दे डालोगे

7. इन्ना ज’अ़ल्ना मा ‘अलल अरज़ि ज़ी नतल लहा लिनब्लु वहुम अय्युहुम अह्सनु ‘अ़ मला

• और जो कुछ रुए ज़मीन पर है हमने उसकी ज़ीनत (रौनक़) क़रार दी ताकि हम लोगों का इम्तिहान लें कि उनमें से कौन सबसे अच्छा चलन का है

8. व इन्ना लजा’ईलू न मा ‘अ़लैहा स’ईदन जुरूज़ा

• और (फिर) हम एक न एक दिन जो कुछ भी इस पर है (सबको मिटा करके) चटियल मैदान बना देगें

9. अम हसिब त अन् न अस्हाबल् कह्फ़ि वर-रकीमि कानू मिन् आयातिना ‘अ जबा

• (ऐ रसूल) क्या तुम ये ख्याल करते हो कि असहाब कहफ व रक़ीम (खोह) और (तख्ती वाले) हमारी (क़ुदरत की) निशानियों में से एक अजीब (निशानी) थे

10. इज़ अवल फ़ित्यतु इलल् कह्फि फ़क़ालू रब्बना आतिना मिल्लदुन् क रह-मतंव व हय्यिअ लना मिन अमरिना र शदा

• कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर

11. फ़ ज़-रबना ‘अ़ला आज़ानिहिम् फ़िल् कहफि सिनी न अ़ ददा

• तब हमने कई बरस तक ग़ार में उनके कानों पर पर्दे डाल दिए (उन्हें सुला दिया)

12. सुम-म बअ़स-नाहुम लि न’अलम अय्युल हिज़्बैनि अह्सा लिमा लबिसू ‘अ मदा

• फिर हमने उन्हें चौकाया ताकि हम देखें कि दो गिरोहों में से किसी को (ग़ार में) ठहरने की मुद्दत खूब याद है

13. नह़्नु नक़ुस्सु अ़लै क न ब अहुम् बिल-हक़्क़ी, इन्नहुम फ़ित्यतुन आमनू बिरब्बिहिम व ज़िदनाहुम हुदा

• (ऐ रसूल) अब हम उनका हाल तुमसे बिल्कुल ठीक तहक़ीक़ातन (यक़ीन के साथ) बयान करते हैं वह चन्द जवान थे कि अपने (सच्चे) परवरदिगार पर ईमान लाए थे और हम ने उनकी सोच समझ और ज्यादा कर दी है

14. व रबत्ना ‘अ़ला क़ुलूबिहिम इज़ कामू फ़क़ालू रब्बुना रब्बुस्समावाति वल्अर्ज़ि लन नद’अु व मिन दूनिही इलाहल ल क़द क़ुल्ना इज़न श तता

• और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें

15. हाउला इ क़ौमुनत त ख़ज़ू मिन दूनिही आलि हतह , लौ ला यअतू न ‘अ़लैहिम बिसुल्तानिम् बैइन, फ़ मन अज़्लमु मिम् मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबा

• अगर हम ऐसा करे तो यक़ीनन हमने अक़ल से दूर की बात कही (अफसोस एक) ये हमारी क़ौम के लोग हैं कि जिन्होनें ख़ुदा को छोड़कर (दूसरे) माबूद बनाए हैं (फिर) ये लोग उनके (माबूद होने) की कोई सरीही (खुली) दलील क्यों नहीं पेश करते और जो शख़्श ख़ुदा पर झूट बोहतान बाँधे उससे ज्यादा ज़ालिम और कौन होगा

16. व इज़िअ तज़ल्तुमूहुम व मा यअबुदू न इल्लल्ला ह फ़अवू इलल कह्फ़ि यन्शुर लकुम रब्बुकुम मिर-रहमतिही व युहय्यिअ लकुम मिन अम रिकुम मिर फ़क़ा

• (फिर बाहम कहने लगे कि) जब तुमने उन लोगों से और ख़ुदा के सिवा जिन माबूदों की ये लोग परसतिश करते हैं उनसे किनारा कशी करली तो चलो (फलॉ) ग़ार में जा बैठो और तुम्हारा परवरदिगार अपनी रहमत तुम पर वसीह कर देगा और तुम्हारा काम में तुम्हारे लिए आसानी के सामान मुहय्या करेगा

17. व तरश-शम स इज़ा त लअत-तज़ा वरू ‘अन कह्फ़िहिम ज़ातल यमीनि व इज़ा ग़ रबत तक़-रिज़ुहुम ज़ातश-शिमालि व हुम फी फ़ज्वतिम मिनहु, ज़ालि क मिन आयातिल्लाहि , मैं-यह-दिल्लाहु फ़-हुवलमुहतदि व मैं यूज़लिल फ़ लन तजि द लहू वलिय्यम मुर-शिदा

• (ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे

18. व तह-सबुहुम ऐकाज़न्व व हुम रूक़ूदुंव व नुक़ल्लिबु-हुम जा़तल यमीनि व ज़ातश-शिमालि व कल्बुहुम बासितुन ज़िराअै़हि बिल वसीदि , लवित-त लअ त अ़लैहिम लवल्लै त मिन्हुम फ़िरारंव व लमुलिअ- त मिन्हुम रूअबा

• तू उनको समझेगा कि वह जागते हैं हालॉकि वह (गहरी नींद में) सो रहे हैं और हम कभी दाहिनी तरफ और कभी बायीं तरफ उनकी करवट बदलवा देते हैं और उनका कुत्ताा अपने आगे के दोनो पाँव फैलाए चौखट पर डटा बैठा है (उनकी ये हालत है कि) अगर कहीं तू उनको झाक कर देखे तो उलटे पाँव ज़रुर भाग खड़े हो और तेरे दिल में दहशत समा जाए

19. व कज़ालि क बअस-नाहुम लि य तसाअलू बैनहुम, क़ा ल का़इलुम मिनहुम कम लबिस्तुम, क़ालू लबिसना यौमन औ बअ-ज़ यौमिन, का़लू रब्बुकुम आ-लमु बिमा लबिसतुम फ़बअसू अ ह दकुम बि-वरिक़िकुम हाज़िही इलल फ़लयन-ज़ुर अय्युहा अज़्का तआमन फल-यअ-तिकुम बिरिज़-किम मिनहु वल-य-त • लत-तफ व ला युश-‘इरन न बिकुम अ हदा

• और (जिस तरह अपनी कुदरत से उनको सुलाया) उसी तरह (अपनी कुदरत से) उनको (जगा) उठाया ताकि आपस में कुछ पूछ गछ करें (ग़रज़) उनमें एक बोलने वाला बोल उठा कि (भई आख़िर इस ग़ार में) तुम कितनी मुद्दत ठहरे कहने लगे (अरे ठहरे क्या बस) एक दिन से भी कम उसके बाद कहने लगे कि जितनी देर तुम ग़ार में ठहरे उसको तुम्हारे परवरदिगार ही (कुछ तुम से) बेहतर जानता है (अच्छा) तो अब अपने में से किसी को अपना ये रुपया देकर शहर की तरफ भेजो तो वह (जाकर) देखभाल ले कि वहाँ कौन सा खाना बहुत अच्छा है फिर उसमें से (ज़रुरत भर) खाना तुम्हारे वास्ते ले आए और उसे चाहिए कि वह आहिस्ता चुपके से आ जाए और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे

20. इन्नहुम इंय्यज़हरू ‘अलैकुम यरजुमूकुम औ यु’ई-दूकुम फ़ी मिल्लतिहिम व लन तुफ़लिहू इज़न अ बदा

• इसमें शक़ नहीं कि अगर उन लोगों को तुम्हारी इत्तेलाअ हो गई तो बस फिर तुम को संगसार ही कर देंगें या फिर तुम को अपने दीन की तरफ फेर कर ले जाएँगे और अगर ऐसा हुआ तो फिर तुम कभी कामयाब न होगे

21. व कज़ालि क ‘आसरना ‘अलैहिम लि यअलमू अन न वअदल्लाहि हक़्क़ुव व अन-नस्साअ त ला रै ब फ़ीहा , इज़ य तना ज़’ऊ न बै-नहुम अम-रहुम फ़क़ालुब-नू ‘अलैहिम बुन् यानन , रब्बुहुम ‘आलमु बिहिम , क़ालल्लज़ी न ग़ लबू ‘अला अम-रिहिम ल नत- तख़िज़न न अ़लैहिम मसजिदा

• और हमने यूँ उनकी क़ौम के लोगों को उनकी हालत पर इत्तेलाअ (ख़बर) कराई ताकि वह लोग देख लें कि ख़ुदा को वायदा यक़ीनन सच्चा है और ये (भी समझ लें) कि क़यामत (के आने) में कुछ भी शुबहा नहीं अब (इत्तिलाआ होने के बाद) उनके बारे में लोग बाहम झगड़ने लगे तो कुछ लोगों ने कहा कि उनके (ग़ार) पर (बतौर यादगार) कोई इमारत बना दो उनका परवरदिगार तो उनके हाल से खूब वाक़िफ है ही और उनके बारे में जिन (मोमिनीन) की राए ग़ालिब रही उन्होंने कहा कि हम तो उन (के ग़ार) पर एक मस्जिद बनाएँगें

22. स यक़ूलू न सला सतुर राबि ‘ऊहुम कल्बुहुम व यक़ूलू न ख़मसतुन सादिसुहुम कल्बुहुम रज्मम बिलगै़बि व यक़ूलू न सब’अतुंव व सामिनुहुम कल्बुहुम, क़ुर-रबबी ‘आलमु बि-इद-दतिहिम मा य’अलमुहुम इल्ला क़लील, फ़ला तुमारि फ़ीहिम इल्ला मिरा-अन ज़ाहिरंव व ला तस-तफति फ़ीहिम मिन्हुम अ हदा

• क़रीब है कि लोग (नुसैरे नज़रान) कहेगें कि वह तीन आदमी थे चौथा उनका कुत्ताा (क़तमीर) है और कुछ लोग (आक़िब वग़ैरह) कहते हैं कि वह पाँच आदमी थे छठा उनका कुत्ताा है (ये सब) ग़ैब में अटकल लगाते हैं और कुछ लोग कहते हैं कि सात आदमी हैं और आठवाँ उनका कुत्ताा है (ऐ रसूल) तुम कह दो की उनका सुमार मेरा परवरदिगार ही ख़ब जानता है उन (की गिनती) के थोडे ही लोग जानते हैं तो (ऐ रसूल) तुम (उन लोगों से) असहाब कहफ के बारे में सरसरी गुफ्तगू के सिवा (ज्यादा) न झगड़ों और उनके बारे में उन लोगों से किसी से कुछ पूछ गछ नहीं

23. व ला तक़ूलन न लिशैइन इन्नी फ़ा-‘इलुन ज़ालि क ग़दा

• और किसी काम की निस्बत न कहा करो कि मै इसको कल करुँगा

24. इल्ला अंय्यशा अल्लाहु , वज़कुर रब्ब क इज़ा नसी त व क़ुल ‘असा अंय्यह दि यनि रब्बी लिअक़ र ब मिन हाज़ा र शदा

• मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो

25. व लबिसू फ़ी कह फिहिम सला स मि अतिन सिनी न वज़दादू तिस’आ

• और असहाब कहफ अपने ग़ार में नौ ऊपर तीन सौ बरस रहे

26. क़ुलिल्लाहु अ’अ-लमु बिमा लबिसू लहू गै़बुस-समावाति वल’अरज़ी अबसिर बिही व असमि’अ, मा लहुम मिन दूनिही मिंव-वलिय्यिन्व वला युश-रिकु फ़ी हुक-मिही अ’हदा

• (ऐ रसूल) अगर वह लोग इस पर भी न मानें तो तुम कह दो कि ख़ुदा उनके ठहरने की मुद्दत से बखूबी वाक़िफ है सारे आसमान और ज़मीन का ग़ैब उसी के वास्ते ख़ास है (अल्लाह हो अकबर) वो कैसा देखने वाला क्या ही सुनने वाला है उसके सिवा उन लोगों का कोई सरपरस्त नहीं और वह अपने हुक्म में किसी को अपना दख़ील (शरीक) नहीं बनाता

27. वत्लु मा ऊहि य इलै क मिन् किताबि रब्बि क ला मुबद-दि ल लि कलिमातिही , व लन तजि द मिन दुनिही मुल्त हदा

• और (ऐ रसूल) जो किताब तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से वही के ज़रिए से नाज़िल हुईहै उसको पढ़ा करो उसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता और तुम उसके सिवा कहीं कोई हरगिज़ पनाह की जगह (भी) न पाओगे

28. वसबिर नफ स क म’अल-लज़ी न यद-ऊ न रब्बहुम बिल-ग़दाति वल ‘अशी इ युरीदू न वज्हहू व ला तअदु ऐ-ना क ‘अन-हुम तुरीदु ज़ी नतल हयातिद-दुनिया व ला तुतिअ मन अग़ फ़ल्ना क़लबहू ‘अन ज़िक रिना वत-त ब अ हवाहु व का न अमरुहू फुरूता

• और (ऐ रसूल) जो लोग अपने परवरदिगार को सुबह सवेरे और झटपट वक्त शाम को याद करते हैं और उसकी खुशनूदी के ख्वाहाँ हैं उनके उनके साथ तुम खुद (भी) अपने नफस पर जब्र करो और उनकी तरफ से अपनी नज़र (तवज्जो) न फेरो कि तुम दुनिया में ज़िन्दगी की आराइश चाहने लगो और जिसके दिल को हमने (गोया खुद) अपने ज़िक्र से ग़ाफिल कर दिया है और वह अपनी ख्वाहिशे नफसानी के पीछे पड़ा है और उसका काम सरासर ज्यादती है उसका कहना हरगिज़ न मानना

29. व क़ुलिल हक़्कु मिर रब्बिकुम, फ़ मन शा अ फ़ल्युअ मिंव व मन शा अ फलयकफुर इन्ना ‘आतदना लिज़-जा़लिमी न नारन अहा त बिहिम सुरादिकुहा , व इंय्यस-तगी़सू युगा़सू बिमाइन कल्मुहलि यश विल वुजूह , बिअ सश-शराबु , व साअत मुर त फक़ा

• और (ऐ रसूल) तुम कह दों कि सच्ची बात (कलमए तौहीद) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (नाज़िल हो चुकी है) बस जो चाहे माने और जो चाहे न माने (मगर) हमने ज़ालिमों के लिए वह आग (दहका के) तैयार कर रखी है जिसकी क़नातें उन्हें घेर लेगी और अगर वह लोग दोहाई करेगें तो उनकी फरियाद रसी खौलते हुए पानी से की जाएगी जो मसलन पिघले हुए ताबें की तरह होगा (और) वह मुँह को भून डालेगा क्या बुरा पानी है और (जहन्नुम भी) क्या बुरी जगह है

30. इन्नल-लज़ी न आमनू व ‘अमिलुस्सालिहाति इन्ना ला नुज़ी’उ अज र मन अह स न “अ मला

• इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम करते रहे तो हम हरगिज़ अच्छे काम वालो के अज्र को अकारत नहीं करते 30

31. उलाइ क लहुम जन्नातु अदनिन् तजरि मिन तह तिहिमुल अन्हारू युहल्लौ न फ़ीहा मिन् असावि र मिन् ज़ हबिंव् व यल्बसू न सियाबन ख़ुज़ रम मिन सुन्दुसिंव व इस्तबरक़िम् मुत तकिई न फ़ीहा ‘अलल अराइकि , निअमस्सवाबु , व हसनत मुर त फ़क़ा

ये वही लोग हैं जिनके (रहने सहने के) लिए सदाबहार (बेहश्त के) बाग़ात हैं उनके (मकानात के) नीचे नहरें जारी होगीं वह उन बाग़ात में दमकते हुए कुन्दन के कंगन से सँवारे जाँएगें और उन्हें बारीक रेशम (क्रेब) और दबीज़ रेश्म (वाफते)के धानी जोड़े पहनाए जाएँगें और तख्तों पर तकिए लगाए (बैठे) होगें क्या ही अच्छा बदला है और (बेहश्त भी आसाइश की) कैसी अच्छी जगह है

32. वज़रिब लहुम म स-लर रजुलैनि ज-अलना लि अ हदिहिमा जन्नतैनि मिन् ‘आनाबिंव व हफ़फ़्नाहुमा बिनख़-लिंव व ज ‘अलना बै-नहुमा ज़रआ

• और (ऐ रसूल) इन लोगों से उन दो शख़्शों की मिसाल बयान करो कि उनमें से एक को हमने अंगूर के दो बाग़ दे रखे है और हमने चारो ओर खजूर के पेड़ लगा दिये है और उन दोनों बाग़ के दरमियान खेती भी लगाई है

33. किल्तल जन्नतैनि आतत उकु लहा व लम तज़लिम मिन्हु शैअंव व फ़ज्जरना ख़िला लहुमा न हरा

• वह दोनों बाग़ खूब फल लाए और फल लाने में कुछ कमी नहीं की और हमने उन दोनों बाग़ों के दरमियान नहर भी जारी कर दी है

34. व का न लहू स मरून् फ़क़ा ल लिसाहिबिही व हु व युहाविरूहू अना अक्सरू मिन क मालंव व अ ‘अज़्ज़ु न फ़रा

• और उसे फल मिला तो अपने साथी से जो उससे बातें कर रहा था बोल उठा कि मै तो तुझसे माल में (भी) ज्यादा हूँ और जत्थे में भी बढ़ कर हूँ

35. व द ख़ ल जन्नतहू व हु व ज़ालिमुल लिनफ-सिही क़ा ल मा अजुन-नु अन तबी द हाज़िही अ बदा

• और ये बातें करता हुआ अपने बाग़ मे भी जा पहुँचा हालॉकि उसकी आदत ये थी कि (कुफ्र की वजह से) अपने ऊपर आप ज़ुल्म कर रहा था (ग़रज़ वह कह बैठा) कि मुझे तो इसका गुमान नहीं तो कि कभी भी ये बाग़ उजड़ जाए

36. व मा अज़ुन-नुस-सा अ त क़ा इ मतंव व ल इंर-रुदित-तु इला रब्बी ल अजिदन न खै़रम मिन्हा मुन्क़ लबा

• और मै तो ये भी नहीं ख्याल करता कि क़यामत क़ायम होगी और (बिलग़रज़ हुई भी तो) जब मै अपने परवरदिगार की तरफ लौटाया जाऊँगा तो यक़ीनन इससे कहीं अच्छी जगह पाऊँगा

37. का़ ल लहू साहिबुहू व हु व युहाविरूहू अ कफ़र त बिल्लज़ी ख़ ल क़ क मिन तुराबिन सुम म मिन नुत्फ़तिन सुम म सव्वा क रजुला

• उसका साथी जो उससे बातें कर रहा था कहने लगा कि क्या तू उस परवरदिगार का मुन्किर है जिसने (पहले) तुझे मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुझे बिल्कुल ठीक मर्द (आदमी) बना दिया

38. लाकिन्नना हुवल्लाहु रब्बी व ला उशरिकु बिरब्बी अ हदा

• हम तो (कहते हैं कि) वही ख़ुदा मेरा परवरदिगार है और मै तो अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नहीं बनाता

39. व लौ ला इज़ दख़ल त जन्न त क क़ुल त मा शा अल्लाहु ला कुव्व त इल्ला बिल्लाहि इन् त-रनि अना अक़ल-ल मिन क मालंव व व लदा

• और जब तू अपने बाग़ में आया तो (ये) क्यों न कहा कि ये सब (माशा अल्लाह ख़ुदा ही के चाहने से हुआ है (मेरा कुछ भी नहीं क्योंकि) बग़ैर ख़ुदा की (मदद) के (किसी में) कुछ सकत नहीं अगर माल और औलाद की राह से तू मुझे कम समझता है

40. फ़ ‘असा रब्बी अंय्युअति यनि खै़रम मिन जन्नति क व युरसि ल ‘अलैहा हुस्बानम मिनस-समा इ फतुस-बि ह स’ईदन ज़ लका

• तो अनक़ीरब ही मेरा परवरदिगार मुझे वह बाग़ अता फरमाएगा जो तेरे बाग़ से कहीं बेहतर होगा और तेरे बाग़ पर कोई ऐसी आफत आसमान से नाज़िल करे कि (ख़ाक सियाह) होकर चटियल चिकना सफ़ाचट मैदान हो जाए

41. औ युस-बि ह मा उहा गौ़रन फ़ लन तस-तती ‘अ लहू त लबा

• उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके

42. व उही त बि स मरिही फ़ अस ब ह युक़ल-लिबु कफ़्फै़हि ‘अला मा अन्फ़ क़ फ़ीहा व हि य ख़ावि यतुन ‘अला ‘उरूशिहा व यक़ूलु यालैतनी लम् उश-रिक बिरब्बी अ हदा

• (चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता

43. व लम तकुंल-लहू फ़ि अतुंइ-यन-सुरूनहू मिन दूनिल्लाहि व मा का न मुन- तसिरा

• और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया

44. हुना लिकल व ला यतु लिल्लाहिल हक़ , हु व खै़रून सवाबंव व खै़रून ‘उक़-बा

• कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है

45. वज़-रिब लहुम म सलल हयातिद-दुनिया कमाइन अन-ज़ल-नाहु मिनस-समा इ फ़ख-त ल त बिही नबातुल-अरज़ि फ़-अस ब ह हशीमन तज़-रुहुर-रियाह , व का-नल्लाहु ‘अला कुल्लि शैइम मुक़-तदिरा

• और (ऐ रसूल) इनसे दुनिया की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आख़िर रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

46. अल-मालु वल-बनू न ज़ी-नतुल हयातिद- दुन-या वल-बा-क़ियातुस-सालिहातु खैरून ‘इन द रब्बि क सवा-बंव व खैरून अ मला

• (ऐ रसूल) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं

47. व यौ म नुसइ- इरूल जिबा ल व तरल अर ज़ बारि ज़-तंव व हशर-नाहुम फ़ लम नुग़ादिर मिन-हुम अ हदा

• और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें

48. व ‘उ रिज़ू ‘अला रब्बि क सफ-फा, ल क़द जिअ-तुमूना कमा ख़लक़-नाकुम अव्व ल मर-रतिम बल ज़-‘अम-तुम अल लन नज ‘अ ल लकुम मौ इदा

• सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक्त ही न ठहराएँगें

49. व वुज़ि’अल किताबु फ़ त-रल मुज-रमी न मुश-फि-की न मिम-मा फीहि व यक़ूलू न या वइ-ल तना मा लि हाज़ल किताबि ला युग़ादिरू सगी़ रतंव व ला कबी रतन् इल्ला अह-साहा व व जदू मा ‘अमिलू हाज़िरन् , व ला यज़-लिमु रब्बु क अ हदा

• और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा

50. व इज क़ुल-ना लिल-मलाइ कतिस-जुदू लिआ द म फ़ स जदू इल्ला इबली स , का न मिनल जिन्नि फ़ फ़ स क़ अन अमरि रब्बिह , अ फ़ तत-तख़ि-ज़ू-नहू व ज़ुर रि य-तहू औलिया अ मिन दूनी व हुम लकुम अ़दुव , बिअ स लिज़्जा़लिमी न ब दला

• और (वह वक्त याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालॉकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है

51. मा अश-हत-तुहुम ख़ल-क़स समावाति वल-अरज़ि व ला ख़ल-क़ अनफुसिहिम व मा कुन्तु मुत-त ख़िज़ल मुज़िल-ली न ‘अज़ुदा

• मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक्त अौर मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता

52. व यौ म यक़ूलु नादू शु रकाइ यल्लज़ी न ज़ ‘अम-तुम फ़ दऔ़हुम फ़ लम यस तजीबू लहुम व ज ‘अलना बै-नहुम मौबिक़ा

• और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक (खतरनाक) आड़ बना देंगे

53. व र अल मुजरि-मूनन ना र फ़ ज़न-नु अन-नहुम मुवा क़ि’ऊहा व लम यजिदू ‘अनहा मस-रिफ़ा

• और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ (बचने की) की राह न पाएँगें

54. व ल क़द सर-रफना फ़ी हाज़ल क़ुरआनि लिन्नासि मिन कुल्लि म सल , व कानल इन्सानु अक स र शैइन ज दला

• और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज्यादा झगड़ालू है

55. व मा म न ‘अन ना स अंय्युअ-मिनू इज़ जा अहुमुल्हुदा व यस-तग़-फिरू रब्बहुम इल्ला अन तअति यहुम सुन्नतुल अव्वली न औ यअति यहुमुल ‘अज़ाबु क़ुबुला

• और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो

56. व मा नुर सिलुल मुर सली न इल्ला मुबश शरी न व मुन्ज़िरी न व युजादिलुल-लज़ी न क फरू बिल्बातिलि लियुद-हिज़ू बिहिल-हक़-क़ वत-त ख़जू आयाती व मा उनज़िरू हुज़ुवा

• और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है

57. व मन अज़लमु मिम मन ज़ुक-कि र बिआयाति रब्बिही फ़ अअ र ज़ ‘अनहा व नसि य मा क़द-दमत यदाह , इन्ना ज’अलना ‘अला क़ुलूबिहिम अकिन-न तन अंय्यफ़्क़हू हु व फी आज़ानिहिम् वक़ रा , व इन तद-‘उहुम इलल हुदा फ़ लंय्यह्तदू इज़न अ बदा

• और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी (मुँह फेर ले) करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं

58. व रब्बुकल ग़फूरू ज़ुर-रह-मह, लौ यु आख़िज़ुहुम बिमा क सबू ल ‘अज-ज ल लहुमुल अज़ाब , बल लहुम मौ’इदुल लंय्यजिदू मिन दूनिही मौ इला

• और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीें पनाह की जगह न पाएंगें

59. व तिल्कल क़ुरा अह-लक-नाहुम लम्मा ज़ लमू व ज’अलना लि-मह-लिकिहिम मौ ‘इदा

• और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी ऑंखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी

60. व इज़ क़ा ल मूसा लि फ़ताहु ला अब-रहु हत-ता अबलु ग़ मज म ‘अल बहरैनि औ अमज़ि य हुक़ुबा

• (ऐ रसूल) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा (60)

61. फ़ लम्मा ब लगा़ मज म ‘अ बैनिहिमा नसिया हू तहुमा फत-त ख़ ज़ सबीलहू फ़िल्बहरि स रबा

• ख्वाह (अगर मुलाक़ात न हो तो) बरसों यूँ ही चलता जाऊँगा फिर जब ये दोनों उन दोनों दरियाओं के मिलने की जगह पहुँचे तो अपनी (भुनी हुई) मछली छोड़ चले तो उसने दरिया में सुरंग बनाकर अपनी राह ली

62. फ़ लम्मा जा वज़ा क़ा ल लि फ़ताहु आतिना ग़दा अना , ल क़द लकी़ना मिन स फ़रिना हाज़ा न सबा

• फिर जब कुछ और आगे बढ़ गए तो मूसा ने अपने जवान (वसी) से कहा (अजी हमारा नाश्ता तो हमें दे दो हमारे (आज के) इस सफर से तो हमको बड़ी थकन हो गई

63. का क़ अ र ऐ त इज़ अवैना इल्लस-सख़-रति फ़ इन्नी नसीतुल हू त वमा अन-सानीहु इल्लश-शैतानु अन अज़्कु रहु वत-त ख़ ज़ सबी लहू फ़िल-बहरि ‘अ जबा

• (यूशा ने) कहा क्या आप ने देखा भी कि जब हम लोग (दरिया के किनारे) उस पत्थर के पास ठहरे तो मै (उसी जगह) मछली छोड़ आया और मुझे आप से उसका ज़िक्र करना शैतान ने भुला दिया और मछली ने अजीब तरह से दरिया में अपनी राह ली

64. क़ा ल ज़ालि क मा कुन्ना नब-गी फ़र तद-दा ‘अला आसारिहिमा क़ ससा

• मूसा ने कहा वही तो वह (जगह) है जिसकी हम जुस्तजू (तलाश) में थे फिर दोनों अपने क़दम के निशानों पर देखते देखते उलटे पॉव फिरे

65. फ़ व जदा ‘अब-दम मिन ‘ईबादिना आतैनाहु रह-म तम मिन् ‘इन-दिना व ‘अल्लम्नाहु मिल्ल-दुन्ना ‘ईल्मा

• तो (जहाँ मछली थी) दोनों ने हमारे बन्दों में से एक (ख़ास) बन्दा खिज्र को पाया जिसको हमने अपनी बारगाह से रहमत (विलायत) का हिस्सा अता किया था (65)

66. क़ा ल लहू मूसा हल अत-तबिउ क ‘अला अन तु’अल-लि मनि मिम्मा ‘उल लिम त रूश्दा

• और हमने उसे इल्म लदुन्नी (अपने ख़ास इल्म) में से कुछ सिखाया था मूसा ने उन (ख़िज्र) से कहा क्या (आपकी इजाज़त है कि) मै इस ग़रज़ से आपके साथ साथ रहूँ

67. का़ ल इन्न क लन तस्तती ‘अ म ‘इ य सबि-रा

• कि जो रहनुमाई का इल्म आपको है (ख़ुदा की तरफ से) सिखाया गया है उसमें से कुछ मुझे भी सिखा दीजिए खिज्र ने कहा (मै सिखा दूँगा मगर) आपसे मेरे साथ सब्र न हो सकेगा

68. व कै फ़ तस-बिरू ‘अला मा लम तुहित बिही खुब-रा

• और (सच तो ये है) जो चीज़ आपके इल्मी अहाते से बाहर हो

69. क़ा ल स तजिदुनी इन्शा अल्लाहु साबिरंव व ला अअसी ल क अम-रा

• उस पर आप सब्र क्योंकर कर सकते हैं मूसा ने कहा (आप इत्मिनान रखिए) अगर ख़ुदा ने चाहा तो आप मुझे साबिर आदमी पाएँगें

70. क़ा ल फ़ इनित-त बअतनी फ़ला तसअल्नी ‘अन शैइन हत्ता उह- दि स ल क मिन्हु ज़िक-रा

• और मै आपके किसी हुक्म की नाफरमानी न करुँगा खिज्र ने कहा अच्छा तो अगर आप को मेरे साथ रहना है तो जब तक मै खुद आपसे किसी बात का ज़िक्र न छेडँ

71. फन्त लक़ा , हत्ता इज़ा रकिबा फ़िस्सफ़ी नति ख़ र कहा , क़ा ल अ ख़रक़-तहा लितुग़- रि क़ अह़्लहा ल क़द जिअ त शैअन इम-रा

• आप मुझसे किसी चीज़ के बारे में न पूछियेगा ग़रज़ ये दोनो (मिलकर) चल खड़े हुए यहाँ तक कि (एक दरिया में) जब दोनों कश्ती में सवार हुए तो ख़िज्र ने कश्ती में छेद कर दिया मूसा ने कहा (आप ने तो ग़ज़ब कर दिया) क्या कश्ती में इस ग़रज़ से सुराख़ किया है

72. क़ा ल अलम् अक़ुल इन्न क लन तस्तती ‘अ म इ य सब-रा

• कि लोगों को डुबा दीजिए ये तो आप ने बड़ी अजीब बात की है-ख़िज्र ने कहा क्या मैने आप से (पहले ही) न कह दिया था

73. क़ा ल ला तुआख़िज़्नी बिमा नसीतु वला तुरहिक़ नी मिन अम-रि ‘अु़सरा

• कि आप मेरे साथ हरगिज़ सब्र न कर सकेगे-मूसा ने कहा अच्छा जो हुआ सो हुआ आप मेरी गिरफत न कीजिए और मुझ पर मेरे इस मामले में इतनी सख्ती न कीजिए

74. फ़न्त लक़ा , हत्ता इज़ा लक़िया ग़ुलामन फ़ क़ त लहू का़ ल अ क़तल त नफ़्सन ज़किय्य तम बिगै़रि नफ़्सिन , ल क़द जिअ त शैअन नुकरा

• (ख़ैर ये तो हो गया) फिर दोनों के दोनों आगे चले यहाँ तक कि दोनों एक लड़के से मिले तो उस बन्दे ख़ुदा ने उसे जान से मार डाला मूसा ने कहा (ऐ माज़ अल्लाह) क्या आपने एक मासूम शख़्श को मार डाला और वह भी किसी के (ख़ौफ के) बदले में नहीं आपने तो यक़ीनी एक अजीब हरकत की

75. क़ा ल अलम अक़ुल ल क इन्न क लन तस्तती ‘अ म’इ य सब-रा

• खिज्र ने कहा कि मैंने आपसे (मुक़र्रर) न कह दिया था कि आप मेरे साथ हरगिज़ नहीं सब्र कर सकेगें

76. क़ा ल इन सअल्तु क ‘अन शैइम ब’अ दहा फ़ला तुसाहिब्नी क़द बलग़ त मिल्लदुन्नी उज़ रा

• मूसा ने कहा (ख़ैर जो हुआ वह हुआ) अब अगर मैं आप से किसी चीज़ के बारे में पूछगछ करूँगा तो आप मुझे अपने साथ न रखियेगा बेशक आप मेरी तरफ से माज़रत (की हद को) पहुँच गए

77. फ़न्त लका़ , हत-ता इज़ा अ तया अह ल क़र यति निस्तत ‘अमा अह-लहा फ़ अबौ अंय्युज़य्यिफूहुमा फ़ व जदा फ़ीहा जिदारंय्युरीदु अंय्यन्क़ज़-ज़ फ़ अक़ामहू , क़ा ल लौ शिअ त लत-त ख़ज़ त ‘अलैहि अज-रा

• ग़रज़ (ये सब हो हुआ कर फिर) दोनों आगे चले यहाँ तक कि जब एक गाँव वालों के पास पहुँचे तो वहाँ के लोगों से कुछ खाने को माँगा तो उन लोगों ने दोनों को मेहमान बनाने से इन्कार कर दिया फिर उन दोनों ने उसी गाँव में एक दीवार को देखा कि गिरा ही चाहती थी तो खिज्र ने उसे सीधा खड़ा कर दिया उस पर मूसा ने कहा अगर आप चाहते तो (इन लोगों से) इसकी मज़दूरी ले सकते थे

78. क़ा ल हाज़ा फ़िराक़ु बैनी व बैनि क स उ नब-बि उ क बितअ्-वीलि मा लम् तस्ततिअ् अ़लैहि सब-रा

• (ताकि खाने का सहारा होता) खिज्र ने कहा मेरे और आपके दरमियान छुट्टम छुट्टा अब जिन बातों पर आप से सब्र न हो सका मैं अभी आप को उनकी असल हक़ीकत बताए देता हूँ

79. अम-मस-सफी नतु फ़ कानत लि मसाकी न यअ्मलू न फ़िल-बहरि फ़ अ-रत-तु अन् अ’ई बहा व का न वरा अहुम् मलिकुंय्यअखुजु कुल ल सफी़ नतिन ग़स-बा

• (लीजिए सुनिये) वह कश्ती (जिसमें मैंने सुराख़ कर दिया था) तो चन्द ग़रीबों की थी जो दरिया में मेहनत करके गुज़ारा करते थे मैंने चाहा कि उसे ऐबदार बना दूँ (क्योंकि) उनके पीछे-पीछे एक (ज़ालिम) बादशाह (आता) था कि तमाम कश्तियां ज़बरदस्ती बेगार में पकड़ लेता था

80. व अम्मल् गुलामु फ़का न अ बवाहु मुअ्मिनैनि फ़ ख़शीना अंय्युरहि क़हुमा तुग्यानंव् व कुफ-रा

• और वह जो लड़का जिसको मैंने मार डाला तो उसके माँ बाप दोनों (सच्चे) ईमानदार हैं तो मुझको ये अन्देशा हुआ कि (ऐसा न हो कि बड़ा होकर) उनको भी अपने सरकशी और कुफ़्र में फँसा दे

81. फ़ अ-रदना अंय्युब-दि लहुमा रब्बुहुमा खै़रम् मिन्हु ज़कातंव् व अक़ र ब रूहमा

• तो हमने चाहा कि (हम उसको मार डाले और) उनका परवरदिगार इसके बदले में ऐसा फरज़न्द अता फरमाए जो उससे पाक नफ़सी और पाक कराबत में बेहतर हो

82. व अम्मल् जिदारू फ़का न लिग़ुलामैनि यतीमैनि फिल् मदीनति व का न तह्तहू कन्ज़ुल् लहुमा व का न अबूहुमा सालिहन् फ़ अरा द रब्बु क अंय्यब्लुगा अशुद- द -हुमा व यस्तख़ रिजा कन्ज़हुमा रह-मतम् मिर रब-बि क व मा फ़अ़ल्तुहू ‘अन अम रि , ज़ालि क तअ्वीलु मा लम् तस् ति’अ ‘अलैहि सब रा

• और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका

83. व यसअलून क ‘अन ज़िल्क़रनैन , क़ुल स अत-लू ‘अलैकुम मिन्हु ज़िक-रा

• और (ऐ रसूल) तुमसे लोग ज़ुलक़रनैन का हाल (इम्तेहान) पूछा करते हैं तुम उनके जवाब में कह दो कि मैं भी तुम्हें उसका कुछ हाल बता देता हूँ

84. इन्ना मक्कन्ना लहू फ़िलअर-ज़ि व आतैनाहु मिन कुल्लि शैइन स बबा

• (ख़ुदा फरमाता है कि) बेशक हमने उनको ज़मीन पर कुदरतें हुकूमत अता की थी और हमने उसे हर चीज़ के साज़ व सामान दे रखे थे

85. फ़ अत्ब ‘अ स बबा

• वह एक सामान (सफर के) पीछे पड़ा

86. हत्ता इज़ा ब ल ग़ मग़ रिबश-शमसि व ज दहा तग़-रूबु फ़ी अै़निन् हमि अतिंव् व व ज द ‘इन दहा क़ौमा , क़ुलना या ज़ल्करनैनि इम्मा अन तु’अज़्ज़ि ब व इम्मा अन तत तखि ज़ फ़ीहिम हुस्ना

• यहाँ तक कि जब (चलते-चलते) आफताब के ग़ुरूब होने की जगह पहुँचा तो आफताब उनको ऐसा दिखाई दिया कि (गोया) वह काली कीचड़ के चश्में में डूब रहा है और उसी चश्में के क़रीब एक क़ौम को भी आबाद पाया हमने कहा ऐ जुलकरनैन (तुमको एख्तियार है) ख्वाह इनके कुफ्र की वजह से इनकी सज़ा करो (कि ईमान लाए) या इनके साथ हुस्ने सुलूक का शेवा एख्तियार करो (कि खुद ईमान क़ुबूल करें)

87. क़ा ल अम्मा मन ज़ ल म फ़सौ फ़ नु’अज़-ज़िबुहू सुम म युरद-दु इला रब्बिही फ़यु’अज़-ज़िबुहू अ़ज़ाबन नुक- रा

• जुलकरनैन ने अर्ज़ की जो शख्स सरकशी करेगा तो हम उसकी फौरन सज़ा कर देगें (आख़िर) फिर वह (क़यामत में) अपने परवरदिगार के सामने लौटाकर लाया ही जाएगा और वह बुरी से बुरी सज़ा देगा

88. व अम्मा मन आम न व ‘अमि ल सालिहन फ़ लहू जज़ा अ निल्हुस्ना व स नक़ूलु लहू मिन अम-रिना युस-रा

• और जो शख्स ईमान कुबूल करेगा और अच्छे काम करेगा तो (वैसा ही) उसके लिए अच्छे से अच्छा बदला है और हम बहुत जल्द उसे अपने कामों में से आसान काम (करने) को कहेंगे

89. सुम म अत-ब ‘अ स बबा

• फिर उस ने एक दूसरी राह एख्तियार की

90. हत्ता इज़ा ब ल ग़ मतलि’अश-शमसि व ज दहा ततलुऊ ‘अला कौ़मिल लम नज’अल लहुम मिन दूनिहा सितरा

• यहाँ तक कि जब चलते-चलते आफताब के तूलूउ होने की जगह पहुँचा तो (आफताब) से ऐसा ही दिखाई दिया (गोया) कुछ लोगों के सर पर उस तरह तुलूउ कर रहा है जिन के लिए हमने आफताब के सामने कोई आड़ नहीं बनाया था

91. कज़ालि क व क़द अ हत्ना बिमा लदैहि खुब रा

• और था भी ऐसा ही और जुलक़रनैन के पास वो कुछ भी था हमको उससे पूरी वाकफ़ियत थी

92. सुम म अत ब ‘अ स बबा

• (ग़रज़) उसने फिर एक और राह एख्तियार की

93. हत्ता इज़ा ब ल ग़ बैनस- सद- दैनि व ज द मिन दूनिहिमा क़ौमल ला यकादू न यफ़्क़हू न क़ौला

• यहाँ तक कि जब चलते-चलते रोम में एक पहाड़ के (कंगुरों के) दीवारों के बीचो बीच पहुँच गया तो उन दोनों दीवारों के इस तरफ एक क़ौम को (आबाद) पाया तो बात चीत कुछ समझ ही नहीं सकती थी

94. क़ालू या ज़ल- क़रनैनि इन न यअजू ज व मअजू ज मुफ्सिदू न फ़िल-अर- ज़ि फ़ हल नज’अलु ल क ख़र-जन ‘अला अन तज’अ ल बैनना व बै- नहुम सद-दा

उन लोगों ने मुतरज्जिम के ज़रिए से अर्ज़ की ऐ ज़ुलकरनैन (इसी घाटी के उधर याजूज माजूज की क़ौम है जो) मुल्क में फ़साद फैलाया करते हैं तो अगर आप की इजाज़त हो तो हम लोग इस ग़र्ज़ से आपसे पास चन्दा जमा करें कि आप हमारे और उनके दरमियान कोई दीवार बना दें

95. का़ ल मा मक्कन्नी फ़ीहि रब्बी खै़रून् फ़ अ’ई नूनी बिकुव्वतिन अज’अल बै-नकुम व बै-नहुम रदमा

जुलकरनैन ने कहा कि मेरे परवरदिगार ने ख़र्च की जो कुदरत मुझे दे रखी है वह (तुम्हारे चन्दे से) कहीं बेहतर है (माल की ज़रूरत नहीं) तुम फक़त मुझे क़ूवत से मदद दो तो मैं तुम्हारे और उनके दरमियान एक रोक बना दूँ

96. आतूनी ज़ु बरल हदीद , हत्ता इज़ा सावा बैनस स दफ़ैनि का़लन-फुख़ू हत्ता इज़ा ज ‘अ लहू नारन् क़ा ल आतूनी उफ़-रिग़ ‘अलैहि क़ितरा

• (अच्छा तो) मुझे (कहीं से) लोहे की सिले ला दो (चुनान्चे वह लोग) लाए और एक बड़ी दीवार बनाई यहाँ तक कि जब दोनो कंगूरो के दरमेयान (दीवार) को बुलन्द करके उनको बराबर कर दिया तो उनको हुक्म दिया कि इसके गिर्द आग लगाकर धौको यहां तक उसको (धौंकते-धौंकते) लाल अंगारा बना दिया

97. फ़ मस्ता ‘ऊ अंय्यज़-हरूहु व मस्तता’ऊ लहू नक़-बा

• तो कहा कि अब हमको ताँबा दो कि इसको पिघलाकर इस दीवार पर उँडेल दें (ग़रज़) वह ऐसी ऊँची मज़बूत दीवार बनी कि न तो याजूज व माजूज उस पर चढ़ ही सकते थे और न उसमें नक़ब लगा सकते थे

98. क़ा ल हाज़ा रह-मतुम मिर-रब्बी फ़ इज़ा जा अ व’अदु रब्बी ज ‘अ लहू दक्का अ व का न व’अदु रब्बी हक़्क़ा

• जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है

99. व त रकना ब’अ ज़हुम यौ- म – इज़िंय्यमूजु फ़ी ब’अज़िंव व नुफ़ि ख़ फ़िस-सूरि फ़ ज मअ-नाहुम जम’आ

• और हम उस दिन (उन्हें उनकी हालत पर) छोड़ देंगे कि एक दूसरे में (टकरा के दरिया की) लहरों की तरह गुड़मुड़ हो जाएँ और सूर फूँका जाएगा तो हम सब को इकट्ठा करेंगे

100. व ‘अरज़-ना जहन्न म यौमइज़िल् लिल्काफ़िरी न अरज़ा

• और उसी दिन जहन्नुम को उन काफिरों के सामने खुल्लम खुल्ला पेश करेंगे

101. अल्लज़ी न कानत् अ’अ युनुहुम फ़ी गि ताइन ‘अन ज़िक-रि व कानू ला यस-तती’ऊ न सम’आ

• और उसी (रसूल की दुश्मनी की सच्ची बात) कुछ भी सुन ही न सकते थे

102. अ फ़ हसिबल-लज़ी न क फ़रू अंय्यत- त ख़िजू ‘ईबादी मिन दूनी औलिया-अ , इन्ना अ’अ-तदना जहन्न म लिल्काफ़िरी न नुज़ुला

• तो क्या जिन लोगों ने कुफ्र एख्तियार किया इस ख्याल में हैं कि हमको छोड़कर हमारे बन्दों को अपना सरपरस्त बना लें (कुछ पूछगछ न होगी) (अच्छा सुनो) हमने काफिरों की मेहमानदारी के लिए जहन्नुम तैयार कर रखी है

103. क़ुल हल नुनब-बि -उकुम बिल अख़-सरी न अ’अमाला

• (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या हम उन लोगों का पता बता दें जो लोग आमाल की हैसियत से बहुत घाटे में हैं

104. अल्लज़ी न ज़ल ल स’अयुहुम फ़िल हयातिद- दुन्या व हुम यह-सबू न अन्नहुम युह- सिनू न सुन’आ

• (ये) वह लोग (हैं) जिन की दुनियावी ज़िन्दगी की राई (कोशिश सब) अकारत हो गई और वह उस ख़ाम ख्याल में हैं कि वह यक़ीनन अच्छे-अच्छे काम कर रहे हैं

105. उलाइ -कल्लज़ी न क फ़रू बिआयाति रब्बिहिम व लि -क़ा-इही फ़ हबितत अ’अ-मालुहुम फ़ला नुक़ीमु लहुम यौमल क़ियामति वज़-ना

• यही वह लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार की आयातों से और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाज़िर होने से इन्कार किया तो उनका सब किया कराया अकारत हुआ तो हम उसके लिए क़यामत के दिन मीजान हिसाब भी क़ायम न करेंगे

106. ज़ालि क जज़ाउहुम् जहन्नमु बिमा क फ़रू वत-त ख़ज़ू आयाती व रूसुली हुज़ुवा

• (और सीधे जहन्नुम में झोंक देगें) ये जहन्नुम उनकी करतूतों का बदला है कि उन्होंने कुफ्र एख्तियार किया और मेरी आयतों और मेरे रसूलों को हँसी ठठ्ठा बना लिया

107. इन्नल्लज़ी न आमनू व ‘अमिलुस सालिहाति कानत लहुम जन्नातुल फ़िरदौसि नुज़ुला

• बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किये उनकी मेहमानदारी के लिए फिरदौस (बरी) के बाग़ात होंगे जिनमें वह हमेशा रहेंगे

108. ख़ालिदी न फ़ीहा ला यब- गू न ‘अनहा हि वला

• और वहाँ से हिलने की भी ख्वाहिश न करेंगे

109. क़ुल लौ कानल बहरू मिदादल लि कलिमाति रब्बी ल नफ़िदल् बहरू क़ब ल अन तन-फ़ द कलिमातु रब्बी व लौ जिअना बिमिस-लिही म ददा

• (ऐ रसूल उन लोगों से) कहो कि अगर मेरे परवरदिगार की बातों के (लिखने के) वास्ते समन्दर (का पानी) भी सियाही बन जाए तो क़ब्ल उसके कि मेरे परवरदिगार की बातें ख़त्म हों समन्दर ही ख़त्म हो जाएगा अगरचे हम वैसा ही एक समन्दर उस की मदद को लाँए

110. क़ुल इन्नमा अना ब शरूम मिस्लुकुम यूहा इलय य अन्नमा इलाहुकुम इलाहुंव वाहिदुन फ़ मन का न यरजू लिक़ा अ रब्बिही फ़ल्यअमल ‘अ मलन सालिहंव व ला युश-रिक बि’इबादति रब्बिही अ हदा

• (ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी तुम्हारा ही ऐसा एक आदमी हूँ (फर्क़ इतना है) कि मेरे पास ये वही आई है कि तुम्हारे माबूद यकता माबूद हैं तो वो शख्स आरज़ूमन्द होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसे अच्छे काम करने चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक न करें

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10 Comments

  1. As.salamuwalekum bhaijan
    Meri delivery hok abhi 40 din hi huwe h allah k karam se or aapk duaa se mujhe 1 st time hi aaolade narina huwa h me behad khush hu
    Pr masla ye h ki mere badan pr feeding krane k liye dudh nhi aara 2 se 4 din aaya tha or ab nhi h upr ka dudh bottle se pilati hu pr mere bete ka pet nhi bhrta koi wazifa h to bataye pls dudh aane k liye

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