Qaza Namaz Ki Niyat Karne Ka Tarika

Qaza-Namaz-Ki-Niyat-Karne-Ka-Tarika

क़ज़ा नमाज़ कि नियत कैसे करें? (Qaza Namaz Ki Niyat) क़ज़ा नमाज़ कब पढ़ना चाहिए? कजा नमाज पढ़ने का तरीका क्या है? कजा नमाज का सही वक्त क्या है? इन सभी सवालों के जवाब हदीस की रौशनी में जानिए।

Qaza Namaz Ki Niyat Karne Ka Sahi Tarika

बिना किसी वजह से नमाज कजा कर देना बहुत सख्त गुनाह है नमाज छोड़ देने वाले पर फर्ज है कि उसकी क़जा पढ़े और सच्चे दिल से तौबा करें| यहाँ→ Surah Baqarah in Hindi देखिए|

नमाज़ क़ज़ा हो या न हो लेकिन यूँ मान लीजिये के 100 में से 90 लोग नमाज़ की नियत की ठीक नहीं बांधते है|

क़ज़ा नमाज़ का मतलब क्या है?

Qaza Namaz Ka Kya Matlab Hai?

अल्लाह पाक ने जिन कामों का हुक्म दिया है। उन कामों को वक़्त पर ना करने को कज़ा कहते हैं। और वक्त निकलने से पहले किये हुए काम को अदा कहा जाता है।

जैसे अगर फजर की अज़ान के बाद अपने नमाज़ नही पढ़ी और वक़्त निकल गया तो वो नमाज़ क़ज़ा हो गयी, जिसका कफ्फारा चुकाना होगा। यहाँ→Char Qul in Hindi Tarjuma देखिए|

हदीस

एक आदमी ने कहा, या रसूल अल्लाह ﷺ फलां सो गया और कल की नमाज़ छोट गयी यहाँ तक की सुबह हो गयी।

फिर आप ﷺ ने फरमाया:

“शैतान ने उसके कान में पेशाब कर दिया है।”

सुनन निसाइ न. 1609

कजा नमाज का कफ्फारा कैसे अदा करें?

Qaza Namaz Ka Kaffara Kaise Ada Karen?

हदीस

रसूल अल्लाह से एक आदमी के बारे में पूछा जो सो गया और नमाज़ भूल गया या भूल गया, तो आप ﷺ ने फरमाया:

“उसका कफ्फारह ये है की जब याद आये तो पढ़ले।”

सुनन अन-निसाइ न. 614

कजा नमाज को अदा करने का यही तरीका है के, जब भी याद आये के आपकी नमाज़ छूट गयी तो उसे पढ़ कर उसका कफ्फारा अदा कर देना चाहिए।

कौनसी सी नमाज़ों की कजा पढ़ी जाती है?

Kaunsi Namazon Ki Qaza Padhi Jati Hai

हर वक़्त की नमाज़ों में जो फ़र्ज़ नमाज़ होती है और इशा की नमाज़ की वित्र की वाजिब नमाज होती उन नमाज़ों की क़ज़ा पढी जाती है।

सबसे पहले तो नमाज़ो को जान बूझ कर कजा करनी नही चाहिए। नमाज़ के मु’अमले ग़फ़लत करना गुनाह है।

हदीस

रसूल अल्लाह ने फरमाया:

“सोते वक़्त कोई ग़फलत नही, बक्लि ग़फलत ये है की जब कोई एक नमाज़ ना पढ़े यहाँ तक की दूसरी नमाज़ का वक़्त आ जाए और उसे म’अलूम हो के उसकी नमाज़ छोट गयी है।”

सुनन अन-निसाइ न. 616

लेकिन अगर सफ़र पर हो या किसी बुरी बीमारी की वजह से नमाज़ें छूट रही हों, तो नमाज़ों का हिसाब रखलें।

कजा नमाज पढ़ने का सबसे बहतरीन तरीका ये होगा के कजा हुई नमाज़ों को लिख लिया जाए। क्योंकि शैतान हमें नेकी के कामों से रोकता है। इस वजह से हम अच्छे कामों की नियत कर के भी उसे भूल जाते है।

यानी फर्ज नमाज की कजा, जोहर, असर, मग़रिब और इशा की वित्र की छूटी हुई नमजों की कुल त’अदद लिख कर रख लीजिये। →Kunde Ki Niyaz in Hindi

बालिग़ होने के बाद की उम्र की क़ज़ा कैसे पढ़ा जाता है?

Baligh Hone Ke Baad Ki Umar Qaza Kaise Padha Jata Hai?

क़ज़ा नमाज़ो का हिसाब इस अंदाज़े लगाया जा सकता है, की बालिग़ होने से लेकर आज की तारिक में कितनी नामाजें कजा हुई है।

इसी हिसाब से अगर 9 साल की उमर से 10 साल होने तक आपकी नमाज़ कजा हुई है।

इसी तरह एक साल तक आप उमर कजा नमाज की नियत कर के पढ़ सकते है। और उन कजा नमाज़ों का कफ्फारा अदा कर सकते है।

आप चाहें तो जेतना अंदाज़ा अपने लगाया है उससे ज़्यादा भी पढ़ सकते है।

बहुत लोग यह अंदाजा नहीं लगा पाते है, कि हमने अपनी नमाजो को केतनी उम्र से पढ़ना शुरू किया था और हमारी केतनी नमाज़ें छूट गयी है।→Assalamu Alaikum Meaning In Hindi

चाहे औरत हो या मर्द जब से बालिग़ होता है। नमाज, रोजा वगैरह उस पर फर्ज हो जाती है।

शरीयत में बालिग़ होने की उम्र बताई गई है। औरत 9 साल की उम्र से 15 साल की उम्र तक बालिग़ हो जाती है ल।

जब की मर्द 12 साल की उमर में बालिग हो जाता है। तो 15 साल की उम्र में नमाज़ उनपर फ़र्ज़ हो जाती है चाहे वो मर्द हो या औरत।

चाहे बालिग़ होने की निशानियाँ उसमें पाई जाती हो या नही। शरीयत में उन्हे बालिग़ माना जायेगा।

कजा नमाज का सही वक़्त क्या है?

Qaza Namaz Padhne Ka Sahi Waqt Kya Hai?

कजा नमाज का टाइम नहीं है। जिंदगी में जब चाहे पढ़ सकते है। बस अपने उपर से छुटी हुई नमाज़ का कफ्फारा या बोझ उतर जाए।

लेकिन कुछ वक्त है जिनमे कोई भी नमाज़ नही पढ़ी जाती है। इसलिए कजा नमाज का वक्त भी वो वक्त नही होगा।

जैसे:
सूरज निकलने यानी फज़र की नमाज़ के तक़रीबन (20 minute) बाद तक कोई भी नमाज़ अदा करने की इजाज़त नही है।

इसी तरह कजा नमाज भी उस वक़्त नही पढ़नी चाहिए।

ज़वाल का वक्त/टाइम का मतलब क्या है?

Zawal Ka Waqt/Time Ka Matlab Kya Hai?

• फजर की नमाज़ के बाद सूरज तुलूब होता है यानी निकलता है। उस वक्त को दिन का पहला ज़वाल होता है।

• जब सूरज आसमान के बिल्कुल बीच में होता है। यानी दिन के 11:30 से ले कर 12:30 के बीच का वक्त भी ज़वाल का वक्त कहलाता है।

• सूरज गुरूब होने का वक्त, जो असर कि नामज के बाद सूरज डूबता है उस वक्त भी ज़वाल की घडी होती है इसलिए नमाज़ पढ़ना मकरूह है।

इसीलिए सूरज तुलु यानी निकलते वक़्त वक्त, सूरज जब बिल्कुल आसमान के बीच में हो और सूरज गुरूब यानी डूबते वक्त जवाल के टाइम होता है। इसलिए इस वक्त नमाज़ नहीं अदा करनी चाहिए।

इसके अलावा कजा नमाज पढ़ने का वक्त कोई भी हो सकता है। जिस वक्त भी चाहे नमाज़ अदा कर सकते है।

जैसे इशा की नमाज कजा हो गई तो दूसरी इशा की नमाज़ से पहले उस कज़ा नमाज़ को अदा करना बहुत ज़रूरी है। हो सके तो जोहार की नमाज तक अदा कर ले।→Badhazmi Khatm Karne Ki Dua

हदीस

उमर बिन अल खतताब ने फरमाया:

“जिसने अपना रात का हिस्सा (इशा की नमाज़) छोड़ दिया और उसे सूरज ग़ुरूब होने से ले कर ज़ोहर की नमाज़ तक पढ़ा, तो उसने उसे ना छोड़ा, या गोया उसने उसे पढ़ लिया।”

सुनन अन-निसाइ न. 1792

अगर किसी शख्त परेशानी के तहद ज़ोहर की नमाज़ हो गयी हो तो रात की मगरिब या इशा की नमाज़ में उस कज़ा नमाज़ को अदा कर लेना बेहतर होगा।

ना की दूसरे दिन की ज़ोहर की नमाज़ मे उस पहली ज़ोहर की कज़ा नमाज़ को अदा करना सही नही होगा। अल्बत्ता अल्लाह पाक बेहतर जानने वाला है।

किसी मजबूरी में अगर बीच में उम्र क़ज़ा नमाज़ पढ़ना छोड़ दें। तो तमाम नमाजो की त’अदाद हिसाब करके लिख लीजिये। फिर बाद में आप उसे अदा करें तो भी लिख लीजिये।

उम्र कजा नमाज़ पढ़ने का सही तरीका या है के जिस वक्त की नमाज़ अदा करे तो उसी वक्त की क़ज़ा ए उम्री नमाज़ भी अदा कर लीजिये।

जैसे: फज़्र के वक्त फ़र्ज़ की उम्र कजा, जोहर के वक्त , ज़ोहर की कज़ा उमर, मगरिब के वक़्त मगरिब की कजा नामज।

और इसी तरह बकी नमाज़ो की क़जा पढते रहिये। तो सारी कज़ा नमाज़ आसानी से अदा हो जायेगी। इंशा अल्लाह

कुछ नमाज़ों को जिस तरीके से जो नमाज़ छूटी है उसे उसी तरीके से पढ़ना होगा।

जैसे अगर आज की फज़र की 2 रक’अत फ़र्ज़ और 2 रक’अत सुन्नत नमाज कजा हुई है।

तो अगर आप 12 बजने से पहले पढ़ रहे है तो 4 रक’अत नमाज आपको अदा करना बहतर होगा।

हदीस

उन्होंने ने रसूल अल्लाह ﷺ से बयान किया के वो सो गया और नमाज़ छोटे गया, आप ﷺ ने फरमाया:

“सोते वक़्त ग़फलत नही होती, बल्कि जागते वक़्त ग़फलत होती है, अगर तुम में से कोई नमाज़ भूल जाए या सो जाए, याद रहे, जब याद आये तो पढ़ले।”

सुनन अन-निसाइ न. 615

लेकिन अगर ज़ोहर का वक्त आ गया तो 2 रक’अत फ़र्ज़ की नियत की जयेगी और दो ही रक’अत पढ़ी जाएगी।

लेकिन हर नमाज़ की क़ज़ा ए उम्र अगर पढ़ रहे है तो सिर्फ उस वक्त की फ़र्ज़ नमाज़ की ही कजा पढ़ी जायेगी।

कजा नमाज की नियत कैसे करे?

Qaza Namaz Ki Niyat Kaise Bandhe?

जिस आदमी के पर सालों की नमाज कजा हुई हो। और ठीक उसी तरीके से उसे याद ना हो कि उसकी कितने दिनों या सालों की नमाज कजा हुई है।→ ALLAH Ke 99 Naam

और कौन-कौन सी नमाज कजा हुई है ये भी याद नही तो वह इस तरह नियत करके नमाज पढ़ सकता है:

“नियत करता हूं/करती हूं मैं फज्र या जिस भी वक़्त की नमाज़ क़ज़ा पढ़ रहें है वो बोलिए फिर कहिये “क़जा ए उम्र की, वास्ते अल्लाह त’आला के, मुंह मेरा क़बा शरीफ के तरफ, अल्लाहु अकबर।”

फज्र की क़ज़ा नमाज की नियत और टाइम?

Fajar Ki Qaza Namaz Ki Niyat Aur Time?

जिस वक्त की नमाज़ पढ़ रहे है तो उसी वक्त उस वक्त की पहले की नमाज़ यानी उम्र कजा नमाज पढ़ सकते है।
या चाहें तो सारे दिन की क़ज़ा ए उम्र एक वक्त में ही पढ़ सकते है।

जैसे ज़ोहर की नमाज़ के वक्त पूरे दिन की छोटी हुई नमाज़ पढ़ लजीये।

लेकिन फजर और असर के वक्त सिर्फ उसी वक्त की कजा हुई नमाज़ पढ़ सकते है बाकी नमाज़ों को पढ़ना दुरुस्त नही क्योंकि वो ज़वाल का वक्त है।

याद रखिये फर्ज की क़जा फर्ज हम पर फ़र्ज़ है। वाजिब की कजा हम पर वाजिब है। और सुन्नत की कजा हम पर सुन्नत है।

अगर आपकी ज़ोहर की नमाज़ छूट जाती है। और ज़ोहर का पूरा वक्त निकल गया। तो ज़ुहर की चार रक’अत नमाज़ की कजा मग़रिब में पढे या इशा में पढ़ें लेकिन असर में नहीं पढ़ें।

याद रखिये फजर और असर के वक्त फज्र और असर की नमाज़ के आलावा और कोई भी नमाज़ नही पढ़ना चाहिए। बाकि नमाज़ किसी भी वक्त अदा कर सकते है।

क्या फ़र्ज़ नमाज़ को अदा किये बगैर निफ्लि नमाज़ नही पढ़ सकते?

Kya Farz Namaz Ko Ada Kiye Baghair Nifli Namaz

जब तक आपकी फर्ज कजा नमाज मुकम्मल नहीं होगी, तब तक आप की निफ्लि नमाज़ पढ़ना दुरुस्त नही होगा।

और रही क़ुबूलियात की बात की फ़र्ज़ की कज़ा नमाज़ अदा किये बग़ैर निफ्लि नमाज़ अल्लाह पाक कुबूल नही करेगा।

तो ये बात बिल्कुल गलत है क्योंकि अल्लाह पाक की बेहतर जानने वाला है के किसकी और कोनसी नमाज़ कुबूल होगी और कोनसी नमाज़ नही कुबूल होगी।

इसीलिए अपनी काज़ा ए उमरी को भी अदा कीजिये और नफ़िल नामजों को पढ़िये।

कया पीरियड में नमाज पढ़ना चाहिए?

Kya Period Me Padhna Chahiye?

जी नही, पीरियड यानी हैज़/माहवारी में ना नमाज़ और ना ही क़ुर’आन पाक पढ़ना चाहिए।

लेकिन तस्बीह वग़ैरह पढ़ सकती और वो इबादत कर सकती है जो आपको मुँह ज़बानी याद हो।

जैसे दुरूद शरीफ, अस्तगफ़ार कर सकती और वो क़ुरआन पाक की आयत का दिल में विर्द कर सकती जो आपको याद है। यानी जिदको पढ़ने के लिए आपको उसे छूना ना पढ़े।

अगर बच्चे को क़ुरआन पाक पढ़ने में गलती हो रही हो तो भी आप बगैर छुये पढ़ कर बता सकती है।

पीरियड/हैज़ की कज़ा नमाज़ पढ़ना चाहिए या नही?

Period/Haiz Ki Qaza Namaz Padhna Chahiye Ya Nahi?

हैज़ की हालत में सिर्फ रोज़े क़ज़ा होती है। क़ज़ा ए नमाज़ का शरियत में कोई हुक्म नही है।

हदीस का मफहूम

हज़रत आईशा र.अ. से रिवायत है के, एक औरत ने उनसे पूछा:

क्या हैज़ वाली औरत पर क़ज़ा नमाज़ है जो उसने छोड़ी है?

आईशा र.अ. ने उनसे कहा:

“क्या तुम हरोरिह हो? हम नबी ﷺ के सामने हैज़ में थे और फिर पाक हो जाते थे, और आप ﷺ ने हम से ये नही फरमाया के हम से जो नमाज़ें छूट जाती है उनकी क़ज़ा अदा करें।

सुनन इब्न माजह न. 631

मौत से पहले नमाज़ ए क़ज़ा का कफ्फारा अदा कीजिये!

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6 Comments on “Qaza Namaz Ki Niyat Karne Ka Tarika”

  1. Assalamu Alaikum Warahmatullah, उम्मीद है कि आप खैरियत से होंगे, Allah आपको हमेशा खुश रखें । My Dear Friend नमाज़ के बारे में मैं google पर सर्च कर रहा था तो सामने आपकी वेबसाइट दिखी, आपकी वेबसाइट पर विज़िट करके माशा अल्लाह बहुत कुछ सीखने का मौक़ा मिला । Allah Aap ko Dono Jahan Me Kamyabi Ata Farmaye.

  2. Why don’t you write all this in Roman Hindi also. I’m from Pakistan

  3. Asa
    Qaza namaz parhne ka tarika,English me bheje please

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