इस्लाम के 72 फिरके के नाम (Islam ke 72 Firke ke Naam) क्या है? क़यामत तक इस दुनियाँ में इस्लाम के 73 फिरके बन जायेंगे। जिनमे से एक फिरका वो होगा जो जन्नत में जायेगा। तो कौनसा फिरक़ा जन्नत में जायेगा? और जो इससे मेहरूम रह जायेंगे वो कौन है? इस पोस्ट में हम तफ़्सील से जानेंगे।
इस्लाम के 72 फिरके के नाम | Islam Ke 72 Firke Ke Naam
इस्लाम में फिरके का मतलब (अर्थ)
जब एक मज़हब टुकड़ो में बट कर अलग-अलग हो जाये, उसे फिरको मे बट जाना कहते है। जिस तरह हमारा इस्लाम 72 फिरको में बट गया है। और इतना ही नही इन फिरकों में बहुत सारे इख़्तेलाफ भी है।
मज़हब-ए-इस्लाम में फिरके क्यों बने?
इस्लाम मज़हब में फिरकों का कोई माने नही है, अलबत्ता फिरकों में बटना अल्लाह पाक और उसके रसूल ﷺ के नज़दीक न पसंदीदा अमल है। नबी-ए-करीम ﷺ के दुनियाँ से रुख़्सत होते ही, ये मज़हब फिरको में बटना शुरू होगया। हर फिरका अपने आपको दूसरे फिरकों से बेहतर मानता है।
इनमे इतना इख़्तेलाफ है के यह एक दूसरे को काफिर तक कह देते है। जबकि ऐसा कहना खिलाफ-ए-ईमान है। यहाँ→ALLAH Ke 99 Naam देखिये|
अल्लाह पाक क़ुरआन मजीद में इरशाद फरमाता है:
“बेशक जिन लोगों ने आपने दीन में तफरक़ा डाला और कई फरीक़ बन गए थे उनसे कुछ सरोकार नहीं उनका मामला तो सिर्फ ख़ुदा के हवाले है फिर जो कुछ वह दुनिया में नेक या बद किया करते थे वह उन्हें बता देगा (उसकी रहमत तो देखो)”।
सुरह अल-अनआम, आयत न. 159
इस्लाम के पहले फिरके (गिरोह) का नाम क्या है?
इस्लाम में जो पहला फिरक़ा बना वो क़ुरआन-ओ-हदीस के नाम पर बना है। जिसे अल-जमा’आ कहेंगे। क्योंकि ये गिरोह नबी ﷺ के नक्शे क़दम पर चलते थे। जो सिर्फ क़ुरआन और हदीस के मुताबिक काम किया करते थे। जिनके बयानात क़ुर’अन और हदीस पर ही होते थे।
इस्लाम के चार इमाम के नाम क्या है?
इस्लाम में ये चार इमाम थे, जिन्होंने क़ुरआन-ओ-हदीस के साथ साथ खोलफा-ए-राशिदीन के मुताबिक ही सारे अमल किये। और उनके ख़िलाफ़ कभी कोई दलील नही दी।
- इमाम अबू हनीफ़ा (699-767 ईसवी)
- इमाम शाफ़ई (767-820 ईसवी)
- इमाम हंबल (780-855 ईसवी)
- इमाम मालिक (711-795 ईसवी).
मज़हब-ए-इस्लाम में कई बिरादरी और फिरके है। इस पोस्ट में इस्लाम धर्म (मज़हब) के ७२ (72) फिरको के नाम जानेंगे।
कौनसा फिरका जन्नत में जायेगा?
अब सवाब ये उठता है के मौजूदा दौर में कौनसी जमा’अत वो है जो हुज़ूर ﷺ के साथ जन्नत में जायेगी?
हदीस-ए-रसूल ﷺ के मुताबिक “अल-जमा’आ” वो गिरोह है जो हुज़ूर-ए-अकरम ﷺ के साथ जन्नत में जायेगी। यहाँ→Char Qul in Hindi Tarjuma देखिये|
लेकिन कोई भी ऐसा फिरक़ा नही जो यह दावा करे के उनके फिरक़े का नाम अल-जमा’आ है। क्योंकि अल-जमा’आ के माने तो एक जोट हो कर रहना है। जबकि सभी फिरक़े एक दूसरे से जोदा है, एक दूसरे से इख़्तेलाफ रखता है।
अल-जमा’अ वो है जो हुज़ूर-ए-अकरम ﷺ के और उनके असहाब (सहाबा एकराम) के तरीक़े पर चले । उनके तरीक़े पर चलने वाले जन्नत में जायेंगे।
यानि दीन-ए-इस्लाम को ऐसे थामने वाले जैसा आप ﷺ ने थमा। आप ﷺ की सुन्नत पर क़ायम रहने वाला।
वो सुन्नत जो दीन की दावत दे, दीन को फैलाने में अपनी सारी ज़िंदगी निकाल दे।
दीन में किसी तरह का बदलाव न लाये। क़ुरआन पाक पर सच्चा और पक्का ईमान रखे।
हदीस-ए-मुबारिका
म’आविया बिन अबी सुफयान ने हमारे दरमियाँ खड़े होकर कहा,
ख़बरदार! रसूल अल्लाह ﷺ हमारे दरमियाँ खड़े हुए और फरमाया:
“ख़बरदार! अहले किताब उससे पहले की वो बहत्तर (72) फिरक़ो में बटे थे, और यह उम्मत तेहत्तर (73) में बट जायेगी। उनमें से बहत्तर (72) जहन्नम में जायेगी।
उन में से एक जन्नत में जायेगा, और ये “अल-जमा’अ” गिरोह है।
इब्न य’हया और उमर ने अपनी रिवायत में मज़ीद कहा, आप ﷺ ने फरमाया:
“मेरी उम्मत में ऐसे लोग आएंगे जिन पर ख़्वाहिशात का ग़लबा होगा, जैसे रीवीज़ जो उसके मरीज़ में दाखिल हो जाती है”,
उमर का क़ौल है: ” अपने मरीज़ को घूस जाती है, ना कोई रग़ बाकी रह जाती है और ना जोड़ बाकी वो उसमें घोस जाती है”।
सुनन अबू दावूद, न. 4597
इस्लाम के 72 फिरके के नाम | Islam Ke 72 Firke Ke Naam
फिरके का न. | इस्लाम में फिरके का नाम |
1 | हनफी |
2 | शाफई |
3 | मलिकी |
4 | हम्बली |
5 | सूफी |
6 | वहाबी |
7 | देवबंदी |
8 | बरेलवी |
9 | सलाफी |
10 | अहले हदीस |
11 | इशना अशरी |
12 | जाफरी |
13 | ज़ैदी |
14 | इस्माइली |
15 | बोहरा |
16 | दाऊदी |
17 | खोजा |
18 | द्रुज |
19 | – |
20 | – |
21 | – |
22 | NA |
23 | – |
24 | NA |
25 | NA |
26 | NA |
27 | NA |
28 | NA |
29 | NA |
30 | NA |
31 | NA |
32 | NA |
33 | NA |
34 | NA |
35 | NA |
36 | NA |
37 | NA |
38 | NA |
39 | NA |
40 | NA |
41 | NA |
42 | NA |
43 | NA |
44 | NA |
45 | NA |
46 | – |
47 | NA |
48 | NA |
49 | NA |
50 | NA |
51 | NA |
52 | – |
53 | NA |
54 | – |
55 | NA |
56 | – |
57 | – |
58 | NA |
59 | – |
60 | NA |
61 | – |
62 | – |
63 | NA |
64 | – |
65 | NA |
66 | NA |
67 | NA |
68 | NA |
69 | – |
70 | NA |
71 | NA |
72 | NA |
हदीस-ए-मुबारिका
हज़रत इब्ने उमर र.अ. से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ फरमाते है:
“मेरी उम्मत पर एक ज़माना ज़रूर ऐसा आएगा जैसा की बनी इस्राईल पर आया था बिलकुल हु-ब-हु एक दुसरे के मुताबिक। यहाँ तक की बनी इस्राईल में से अगर किसी ने अपनी माँ के साथ अलानिया बदफैली की होगी तो मेरी उम्मत में ज़रूर कोई होगा जो ऐसा करेगा।
और बनी इस्राईल 72 मज़हबो में बट गए थे और मेरी उम्मत 73 मज़हबो में बट जाएगी, उनमें एक मज़हब वालों के सिवा बाकी तमाम मज़ाहिब वाले नारी और जहन्नमी होंगे”।
सहाबा इकराम ने अर्ज़ किया: “या रसूल अल्लाह ﷺ वह एक मज़हब वाले कौन है? तो आप ﷺ ने फरमाया कि “वह लोग इसी मज़हबो मिल्लत पर कायम रहेंगे जिसपर मैं हूँ और मेरे सहाबा हैं”|
तिर्मिज़ी, न. 171, अबू दाऊद, न. 4579, इब्ने माजह, सफह न. 287
यहाँ→Azan in Hindi Hadees देखिये|
जन्नती फिरका होने की अलामात क्या है?
हदीस में आता है के 73 फिरक़े होंगे और उनमे से एक फिरक़ा जन्नत में जायेगा।
हदीस में अलामात बयान की गयी है के वो लोग जिस भी नामों के फिरकों से ताल्लुक़ रखते होंगे, अगर उनमे वो अलामात पायी गयी जो आप ﷺ ने बयान की।
तो वो लोग जन्नत में जायेंगे, यानी वो लोग चाहे जिस भी फिरके से हो, अगर वो अलामात उनमे है तो वो उस फिरके में आ जायेंगे जो फिरक़ा जन्नती होगा।
पहली अलामत: जो भी जन्नती फिरक़ा होगा वो बड़ी जमा’अत होगी। चार-पंच लोग या चार-पंच हज़ार लोग का गिरोह (जमा’अत) नही होगा।
और कितना लोगो की जमा’अत होगी ये भी नही बताया गया।
बस कुछ अलामात बयान की गयी के अगर उनमें यह अलामात पायी गयी तो वो ही जन्नती फिरका होगा।
दूसरी अलामत: जन्नती फिरक़ा हमेशा हक़ और सच पर चलेगी और हमेशा सच और हक़ पर आवाज़ उठायेगी। इसका मतलब उस फिरक़े के लोग दीन के मु’अमले में किसी तरह का समझौता नही करेंगे।
जिहाद पर भी उतर जायेंगे, मतलब दीनी मु’आमलात में हक़ की राह पर डट कर लड़ने से पीछे नही हटेंगे।
तीसरी अलामत: नबी करीम ﷺ ने फरमाया जिस रास्ते पर मै हूँ और मेरे सहाबा है उस रास्ते पर चलने वाला वाला उस फिरक़े में होगा जो जन्नत में जायेगी।
इससे यसेह मालूम होता है के सिर्फ क़ुरान और हदीस पर चलना ही काफी नही बल्कि क़ुरआन और हदीस साथ-साथ वो अमल भी करे जो आप ﷺ के सहाबा ने किया।
और उन कामों से परहेज़ करें जो उन्होंने करने से परहेज़ किया।
हमने हर पेहलो आपके सामने रखने की कोशिश की है। अब आप खुद देखें, सोचें, सोचे परखें के कोनसी राह सही है और कौनसी सी गलत।
जिनमे ये तीनो अलामात मिलेंगी मतलब
- क़ुरआन
- हदीस
- वो क़ुरआन और हदीस जिसपर आप ﷺ के सहाबा ने अमल किया।
सहाबा मतलब जो नबी करीम ﷺ के साथी थे।
अहले बैत जन्नत में जायेंगे या नही?
इसमें यह अहले बैत होने ना होने का कही ज़िक्र नही पाया गया है। हालांकि अहले बैत की मुहब्बत तो हमारे दिल में है उनकी मुहब्बत हमारे इमान की रग है।
मगर हदीस में सहाबा का ज़िक्र है। तो जो अहले बैत हो या उसके बाहिर हो, वो इस जन्नती फिरक़े में होंगे या नही होंगे इसकी कोई दलील नही पायी गयी है।
तो इसका मतलब जन्नती फिरक़ा अहले बैत भी हो सकता है या नही भी। यहाँ→Bidat Kya Hai? देखिये|
ख़ुलफा-ए-राशिदीन कौन है और कितने है?
सहाबा जिनका नाम सबसे पहले वो चार सहाबा है। सहाबा में सबसे पहला मक़ाम खोलफा-ए-राशिदीन का है। उन्हे ही खोलफा ए राशिदीन कहेंगे।
- हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ र.अ.
- हज़रत उमर र.अ.
- हज़रत उसमान र.अ.
- हज़रत अली र.अ.
एक और हदीस-ए-मुबारिका के माफहूम से यह बात पता चलती है के,
आप ﷺ ने फरमाया:
“जो मेरे बाद जिंदा रहेगा, अंकरीब बहुत से इख़्तेलाफ देखेगा, तो तुम मेरी ‘सुन्नत’ और हिदायत याफ्ता ख़ुलफा-ए-राशिदीन के तरीकेकार को लाज़िम पकड़ लेना, उस से चिमट जाना, उसे दातों से मज़बूत पकड़ लेना, और दीन में निकाली गयी नई बातों से बचते रहना, क्योंकि हर बाई बात बिदत है, और हर बिदत गुमराही”।
इससे ये मालूम चलता है के जो काम खोलफा ए राशिदीन ने नही उससे बचते रहे वो काम भी गलत है।
आज के कुछ लोग है जो कहते है। हम तो इमामों को नही मानते हम तो कुरआन और हदीस को ही मानते है।
जो लोग इमाम को नही मानते उनके वो उसूल ही नही है जिसमे क़ुरआन और हदीस की तसरीर की है।
इससे यह वाज़ेह होता है के जिनके अंदर ये अलामात पायी जायेंगी वो लोग जन्नती होंगे।
अब वो लोग किसी भी फिरक़े से हो सकते। वो बरेलवी में भी हो सकते है, वो देवबंदी में भी हो सकते है। बस उनके आमाल से उनके फिरक़े (गिरोह) का पता चल सकता है। यहाँ→Assalamu Alaikum Meaning In Hindi देखिये|
अब इख़्तिलाफ का मसला
जिनके आमाल में यह तीनो चीज होंगी फिर भी उन मशवरे में इख़्तिलाफ पाया जाये। तो भी वो फिरक़े के मसले में दाखिल नही होता है।
मतलब अगर दो फिरकों के लोगों के आमाल वैसे ही है जैसा आप ﷺ ने फरमाया। और फिर भी उनके मशवरों में, बातों में इख़्तिलाफ है तो भी वो उसी फिरक़े (जन्नती फिरक़ा)में है। यह सब सिर्फ इसलिए के इनके आमाल वैसे है जैसा आप ﷺ ने बयान फरमाया।
क्योंकि इख़्तिलाफ उनके अलग मसले उनके अलग अलग राये के मुताबिक होगा।
और जिन लोगो में यह तीनों अलामात न पायी गयी वो फिर वो लोग अलग-अलग यानी 72 फिरको में बट जायेंगे। जिन्हे जहन्नम में डाला जायेगा।
हमने उल्लमा के बयानात के मुताबिक इस बात को आपके सामने रखा है। अब खुद देखें, सोचें, समझे और परखें आपको जो सही लगता है उसपर अमल करें। बाकी बेशक़ अल्लाह त’आला बेहतर जानने वाला है।
दीन-ए-इस्लाम पर चले, नेक आमाल करें!!
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